बैंगलोर: अस्पतालों की मार्चरी में महिलाओं के शवों के साथ लगातार बलात्कार होने की खबरें सामने आ रही हैं। मगर, IPC में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे कोर्ट इस प्रकार के मामलों में आरोपी को दण्डित कर सकें। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अब इस बात पर गुस्सा प्रकट किया है। न्यायालय ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखते हुए कहा है कि IPC में संसोधन किया जाए। इस प्रकार के मामलों में धारा 377 के तहत सजा का प्रावधान हो, क्योंकि ये एक अप्राकृतिक कृत्य है।
रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक उच्च न्यायालय एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें आरोपी ने हत्या के बाद युवती की लाश के साथ बलात्कार किया था। कोर्ट ने आरोपी को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुना दी। वहीं, दुष्कर्म के मामले में उसे बरी कर दिया गया। अदालत का कहना था कि IPC में शव से बलात्कार करने पर सजा का कोई प्रावधान नहीं है। कानून मानता है कि शव विरोध नहीं कर सकती तो फिर इसे दुष्कर्म कैसे माना जाए? उच्च न्यायालय का कहना है कि ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड और साउथ अफ्रीका में इस तरह के कानून हैं जिनमें महिला के शव के साथ बलात्कार करने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। कोर्ट का कहना था कि सरकार इस प्रकार का संसोधन करे जिससे किसी भी शव के साथ दुष्कर्म न होने पाए।
कोर्ट का कहना है कि निजी व सरकारी अस्पतालों की मार्चरी में अक्सर देखा गया है कि जो व्यक्ति वहां की देखरेख के लिए तैनात है, वो लाशों के साथ बलात्कार करता है। मगर, हमारे देश में ऐसे मामलों से निपटने के लिए कोई सख्त कानून नहीं है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। उच्च न्यायालय का कहना था कि राज्य सरकारों को भी भी इस प्रकार की वारदातों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। कम से कम मुर्दाघरों में CCTV कैमरे तो स्थापित किए जाए, जिससे इस प्रकार की वारदात करने की हिम्मत न पड़ सके। कोर्ट का कहना है कि शवों के साथ दुष्कर्म पर केंद्र को ऐसा कानून बनाना चाहिए, जिसमें कड़ी सजा का प्रावधान हो। सजा मिलने का डर रहेगा, तो लोग ऐसी जघन्य हरकत करने से डरेंगे।