सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के केसों में नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय पर गंभीर मुद्दों की ओर इशारा किया और आदेश दिया कि जिसका अन्य लोगों द्वारा मिसाल के तौर पर उपयोग नहीं कर सकते है। आरोपियों ने जमानत मांगी जबकि दिल्ली पुलिस ने बोला कि वे तीनों को वापस जेल में डालने की मांग नहीं कर रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने दिल्ली पुलिस की याचिका पर इसी सप्ताह आए हाईकोर्ट के निर्णय पर रोक लगाने से मना किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने बोला, 'यह हैरान करने वाला है कि जमानत की एक याचिका में 100 पन्नों के निर्णय में समूचे कानून पर चर्चा की गई है। यह हमें परेशान कर रहा है। यहां कई प्रश्न है, जो यूएपीए की वैधानिकता को लेकर प्रश्न उठाते हैं जिसे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती ही नहीं दी गई थी। ये जमानत याचिकाएं थीं।'
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि दिल्ली दंगा मामले में तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के निर्णय में हाईकोर्ट द्वारा गैरकानूनी गतिविधि निरोधक) कानून यूएपीए) के दायरे को 'सीमित करना एक महत्वपूर्ण' मुद्दा है जिसका पूरे देश पर प्रभाव हो चुका है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्या की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की अपीलों पर JNU छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कालिता और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तनहा को नोटिस जारी किये हैं। तीनों आरोपियों को इन अपील पर चार सप्ताह के भीतर जवाब देने हैं। इस मामले पर अब 19 जुलाई को शुरू हो रहे हफ्ते में सुनवाई की जाएगी।
'फ्लाइंग सिख' ने कहा दुनिया को अलविदा, खेल जगत ने दी श्रद्धांजलि
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने दिल्ली में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से की मुलाकात
कर्नाटक: लॉकडाउन में कल दी जा सकती है ढील, बैठक में होगा अहम फैसला