शिमला: मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश सरकार हाल ही में पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने के फैसले के कारण सुर्खियों में रही है, उस समय यह सवाल काफी उठा था कि, आखिर कांग्रेस सरकार इसका भुगतान कैसे करेगी ? क्योंकि इससे सरकारी ख़ज़ाने पर काफी बोझ पड़ने वाला था। अब, यह पता चला है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने मात्र 10 महीनों के भीतर 11,000 करोड़ रुपये का बड़ा ऋण लिया है, जिससे इसकी राजकोषीय जिम्मेदारी और धन के उपयोग पर सवाल खड़े हो गए हैं।
हर महीने 1100 करोड़ का कर्ज :-
हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार के ऋण अधिग्रहण पर सवाल खड़े हो गए हैं, पिछले 10 महीनों में हर महीने औसतन 1,100 करोड़ रुपये उधार लिए गए हैं। इस चौंका देने वाले आंकड़े की राज्य के राजनीतिक विपक्ष, मुख्य रूप से भाजपा ने आलोचना की है।
Congress will make the whole Nation bankrupt just to appease and secure votes with bankrupt economic models of #Pappu.????
— Oxomiya Jiyori ???????? (@SouleFacts) November 4, 2023
Himachal Cong govt took Rs 10,300 crore loans in just 10 months, but not a single penny used for development.
BJP leader claims based on RTI pic.twitter.com/4KV4jxCBQ0
इस धन का उपयोग कहाँ :-
राज्य के भाजपा के नेता इस संबंध में अपनी चिंताओं के बारे में मुखर रहे हैं, उनका आरोप है कि पर्याप्त ऋण का उपयोग राज्य के विकास या सार्वजनिक कल्याण के लिए नहीं किया गया है। सूचना के अधिकार (RTI) से मिली जानकारी के मुताबिक, इस दौरान सरकार ने बैंकों से 10,300 करोड़ रुपये और अन्य संस्थानों से 1,000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है। हालाँकि, गौर करने वाली बात ये है कि, कांग्रेस सरकार द्वारा इन फंडों को नए संस्थान खोलने, मौजूदा संस्थानों को अपग्रेड करने या स्वास्थ्य विभाग में स्वास्थ्य पेशेवरों की नियुक्ति में नहीं लगाया गया है। तो फिर ये पैसा कहाँ इस्तेमाल हुआ ? क्या पूरा 11000 करोड़ पुरानी पेंशन योजना में गए ? इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल सका है।
बाढ़-भूस्खलन से हिमाचल को नुकसान :-
बता दें कि, कुछ महीने पहले हिमाचल प्रदेश में भीषण बाढ़ आई थी और भूस्खलन से भी काफी तबाही मची थी। इससे राज्य को काफी आर्थिक नुकसान हुआ था और सीएम सुक्खू ने केंद्र सरकार से मदद मांगी थी। जिसके बाद मोदी सरकार ने हिमाचल के लिए चार किस्तों में 862 करोड़ जारी किए हैं। साथ ही प्रदेश की ग्रामीण सड़कों के रखरखाव के लिए केंद्र द्वारा 2700 करोड़ जारी किए गए हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने आपदा में अपने घर गंवाने वाले लोगों के लिए PM आवास योजना के तहत 11000 घर बनाने की भी मंजूरी दी है। वहीं, बाढ़-भूस्खलन में तबाह हुई सड़कों और पुलों के पुनर्निर्माण और मरम्मत के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 400 करोड़ रूपये की घोषणा की है।
राज्य में भर्ती और विकास का अभाव:-
केंद्र द्वारा इन मदद के बाद राज्य सरकार को 11000 करोड़ का कर्ज लेना पड़ा है, तो उसके इस्तेमाल पर सवाल उठ रहे हैं। RTI जानकारी सामने आने के बाद लोग सवाल कर रहे हैं कि, आखिर ये पैसा उपयोग कहाँ किया गया ? लोगों के इन सवालों को राज्य की विपक्षी पार्टी भाजपा ने भी जोरशोर से उठाना शुरू कर दिया है। भाजपा का दावा है कि विभिन्न राज्य विभागों को गतिविधि की समान कमी का सामना करना पड़ रहा है, जो सरकार के कार्यकाल के दौरान भर्ती और विकास कार्यों की कमी का संकेत देता है। भाजपा को आशंका है कि यदि कर्ज लेने की प्रवृत्ति इसी गति से जारी रही, तो राज्य सरकार पर पांच वर्षों के भीतर 60,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज हो सकता है, जो संभावित रूप से हिमाचल प्रदेश को आर्थिक कठिनाई की ओर धकेल सकता है।
केंद्रीय योजनाओं पर निर्भरता:-
प्रदेश भाजपा ने आरोप लगाया है कि हिमाचल प्रदेश में केवल वही योजनाएं सक्रिय रूप से चल रही हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से धन मिलता है। दावा किया जा रहा है कि जहां कांग्रेस सरकार धन की कमी की शिकायत करती है, वहीं उसने कई मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति की है और कैबिनेट रैंक के नए पद बनाए हैं, जिससे राज्य के वित्तीय आवंटन के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं।
बता दें कि, हिमाचल प्रदेश सरकार के तेजी से ऋण अधिग्रहण ने महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है, राज्य की भाजपा ने विकास, भर्ती और वित्तीय जिम्मेदारी की कमी के बारे में चिंता व्यक्त की है। चूँकि राज्य सरकार चिंताजनक दर पर ऋण लेना जारी रख रही है, हिमाचल प्रदेश की दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के बारे में प्रश्न राजनीतिक चर्चा में सबसे आगे बने हुए हैं।
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