नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (24 नवंबर) को जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित समूह की उस रिपोर्ट से जुड़े मामले में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ सख्त सवाल उठाए, जिसमें अडानी समूह को निशाना बनाया गया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण से कहा है कि, 'हमें विदेशी रिपोर्टों को सच क्यों मानना चाहिए? हम रिपोर्ट को खारिज नहीं कर रहे हैं, लेकिन हमें सबूत चाहिए। तो आपके पास अडानी समूह के खिलाफ क्या सबूत है?'
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि, "किसी प्रकाशन के काम को सत्य का सुसमाचार नहीं माना जा सकता।" बता दें कि, अरबपति जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग परियोजना (OCCRP) ने दो विदेशी निवेशकों के माध्यम से अडानी समूह में अंदरूनी व्यापार का आरोप लगाया था। अडानी समूह ने इन्हें "पुनर्नवीनीकरण आरोप" कहा है और "योग्यताहीन हिंडनबर्ग रिपोर्ट" को पुनर्जीवित करने के लिए विदेशी मीडिया के एक वर्ग द्वारा समर्थित सोरोस-वित्त पोषित हितों द्वारा एक और ठोस प्रयास कहा है।
पूंजी बाजार नियामक SEBI ने भी "विदेशी गैर-लाभकारी (NGO)" से आई रिपोर्ट को अविश्वसनीय बताते हुए खारिज कर दिया है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि, "अगर हम ऐसी रिपोर्टों पर कार्रवाई करेंगे तो हमारी एजेंसियां क्या करेंगी? विदेशी रिपोर्टों द्वारा भारतीय नीतियों को प्रभावित करने का एक नया चलन है।" SEBI ने कहा कि उसने अधिक जानकारी के लिए OCCRP से संपर्क किया, लेकिन जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित गैर-लाभकारी संस्था ने नियामक को प्रशांत भूषण द्वारा संचालित एक NGO से संपर्क करने के लिए कहा।
तुषार मेहता ने कहा कि, "आप इस तथाकथित जनहित याचिका में पेश होते हैं, कुछ रिपोर्ट तैयार करते हैं और स्रोत का खुलासा किए बिना यह पूछते हैं? मैं आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था। लेकिन यह हितों का टकराव है।" सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर SEBI इस बात की जांच कर रही है कि क्या हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने से पहले और बाद में कोई उल्लंघन हुआ था। मेहता ने कहा कि सेबी ने संदिग्ध लेनदेन के 24 मामलों में से 22 की जांच पूरी कर ली है, और शेष दो के लिए विदेशी एजेंसियों से जानकारी की प्रतीक्षा की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जो निवेशकों की सुरक्षा के लिए भारत के नियामक तंत्र को देखने वाली अदालत द्वारा नियुक्त समिति पर संदेह पैदा करती प्रतीत होती थी।
प्रशांत भूषण की इस दलील पर कि विशेषज्ञ समिति के कुछ सदस्यों ने अडानी समूह के लिए काम किया है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैनल का गठन उसने (कोर्ट ने) किया था, अडानी ने नहीं। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि, "अगर कोई वकील 2006 में अडानी के लिए पेश हुआ, तो हम 2023 में उससे पूछताछ नहीं कर सकते। समिति पर संदेह उठाना अनुचित है। क्या किसी आरोपी के वकील को कभी जज नहीं बनाया जाएगा? आपको आरोप लगाते समय सावधान रहना चाहिए। किसी पर भी आरोप लगाना आसान है, लेकिन उसे साबित करने के लिए सबूत होना चाहिए।'
बता दें कि, जांच समिति ने मई में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में अडानी ग्रुप को क्लीन चिट दे दी थी। इसने कहा था कि SEBI की ओर से कोई नियामक विफलता नहीं थी, और अडानी समूह की ओर से कोई मूल्य हेरफेर नहीं हुआ था और समूह ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद गंभीर बाजार उथल-पुथल के बीच खुदरा निवेशकों को आराम देने के लिए आवश्यक कदम उठाए थे। बता दें कि, अडानी समूह पर आरोप शेयर बाजार नियमों के उल्लंघन से संबंधित हैं, जिसको लेकर भारत में काफी सियासी बवाल भी मचा था। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि, अडानी देश का पैसा लेकर भाग जाएंगे। लेकिन, अभी तक कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट से अडानी समूह को क्लीन चिट मिल चुकी है और कुछ मामलों की जांच जारी है। हालाँकि, अब तक अडानी समूह के खिलाफ गड़बड़ी या हेरफेर करने का कोई सबूत नहीं मिला है।
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