हिंडनबर्ग की दूकान बंद, SC ने भी ख़ारिज की याचिका, पर निवेशकों का क्या, जिनके लाखों करोड़ डूबे..?

हिंडनबर्ग की दूकान बंद, SC ने भी ख़ारिज की याचिका, पर निवेशकों का क्या, जिनके लाखों करोड़ डूबे..?
Share:

नई दिल्ली: हिंडनबर्ग शॉर्ट सेलिंग कंपनी और अडानी समूह के विवाद ने एक समय देश की आर्थिक और राजनीतिक बहस को गर्म कर दिया था। 2023 की शुरुआत में, जब हिंडनबर्ग ने अडानी समूह पर वित्तीय अनियमितताओं और अपतटीय शेल कंपनियों के जरिए शेयर की कीमतों में हेरफेर करने का आरोप लगाया, तो देश में हड़कंप मच गया। इस रिपोर्ट ने अडानी समूह के शेयरों को ताश के पत्तों की तरह गिरा दिया। भारतीय निवेशकों ने घबराहट में अपने शेयर बेचने शुरू कर दिए, और देखते ही देखते अडानी समूह के शेयरों की कीमतें कई गुना गिर गईं।  

इस पूरे प्रकरण में सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि हिंडनबर्ग, जो अब बंद हो चुकी है, ने अपनी रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों से शॉर्ट सेलिंग के जरिए भारी मुनाफा कमाया। शॉर्ट सेलिंग का यह खेल बेहद चालाकी से खेला गया था। पहले मनगढ़ंत और सनसनीखेज आरोप लगाकर भारतीय बाजार में अराजकता फैलाई गई, जिससे निवेशकों ने घबराकर अपने शेयर बेच दिए। जब शेयर की कीमतें नीचे आईं, तब हिंडनबर्ग ने अपने शॉर्ट पोजीशन से मुनाफा कमा लिया और फिर बाजार से बाहर हो गई। 

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर लंबी सुनवाई हुई। अदालत ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को निर्देश दिया कि वह मामले की निष्पक्ष जांच करे और तीन महीने में अपनी रिपोर्ट पेश करे। लेकिन इस बीच, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और मीडिया में लगातार हो रही चर्चा ने निवेशकों का भरोसा और ज्यादा हिला दिया। सेबी की जांच रिपोर्ट में हिंडनबर्ग के आरोपों को सही ठहराने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिला। बावजूद इसके, भारतीय बाजार में जो तबाही मचनी थी, वह मच चुकी थी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में पुनः इस मामले को खोलने की मांग की गई थी, किन्तु अदालत ने उसे ख़ारिज कर दिया। इस याचिका में शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार के 5 अगस्त, 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने हिंडनबर्ग-अडानी समूह मामले से संबंधित उनके पिछले आवेदन को पंजीकृत करने से इनकार कर दिया था।

शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार द्वारा खारिज किए गए आवेदन में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोपों पर अपनी निर्णायक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देना था। रजिस्ट्रार ने यह कहते हुए उनके विविध आवेदन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि आवेदन में कोई उचित कारण नहीं बताया गया है। उल्लेखनीय है कि, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद भारतीय राजनीति में विपक्ष ने अडानी समूह को लेकर जमकर हंगामा किया। संसद से लेकर सड़कों तक, यह मुद्दा गरमाया रहा। विपक्ष ने इसे बड़े उद्योगपतियों को सरकार द्वारा दिए जा रहे कथित संरक्षण से जोड़कर प्रचारित किया। राजनीतिक बयानबाजी और इस मामले की लगातार हो रही कवरेज ने आम निवेशकों के मन में डर पैदा कर दिया। वे यह समझ ही नहीं पाए कि इन आरोपों में कितनी सच्चाई है। परिणामस्वरूप, उन्होंने अडानी समूह से जुड़े शेयरों को बेचकर अपनी बचत को बचाने की कोशिश की।  

इस पूरे प्रकरण का सबसे बड़ा नुकसान उन छोटे निवेशकों को हुआ, जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई शेयर बाजार में लगाई थी। जब अडानी समूह के शेयरों के दाम गिरे, तो लाखों करोड़ रुपये का निवेश स्वाहा हो गया। यह नुकसान केवल अडानी समूह का नहीं था, बल्कि उन निवेशकों का था जो भारतीय बाजार पर भरोसा करते थे। यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या यह हिंडनबर्ग द्वारा सोची-समझी साजिश थी, जिसमें भारतीय बाजार को निशाना बनाया गया? रिपोर्ट में लगाए गए आरोप, सेबी की जांच और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद भी साबित नहीं हो सके। इससे यह सवाल उठता है कि इस तरह की रिपोर्टों के पीछे क्या उद्देश्य था।  

हिंडनबर्ग की रणनीति स्पष्ट थी—आरोप लगाकर बाजार में घबराहट पैदा करना, और फिर शॉर्ट सेलिंग के जरिए मुनाफा कमाना। यह कोई नई रणनीति नहीं है। शॉर्ट सेलिंग की यह नीति पहले भी कई बार अंतरराष्ट्रीय बाजार में देखी गई है, लेकिन इस बार इसका निशाना भारतीय बाजार और निवेशक थे। इस पूरे प्रकरण ने कई सबक दिए हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि निवेशकों को भावनाओं में बहकर या राजनीतिक बयानबाजी के प्रभाव में आकर निर्णय नहीं लेना चाहिए। शेयर बाजार हमेशा जोखिम और लाभ का खेल होता है, लेकिन ऐसी परिस्थितियों में विवेक बनाए रखना जरूरी है। हिंडनबर्ग अब भले ही बंद हो चुकी है, लेकिन यह संभावना बनी रहती है कि भविष्य में कोई अन्य कंपनी नए नाम से उभरकर ऐसी ही रणनीति अपना सकती है। भारतीय बाजार को स्थिर रखने और निवेशकों का विश्वास बनाए रखने के लिए नियामक संस्थाओं को सतर्क रहने की जरूरत है। साथ ही, मीडिया और राजनीतिक दलों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए।  

सबसे बड़ा सवाल यह है कि अडानी समूह के शेयरों में आई गिरावट और निवेशकों के नुकसान का जिम्मेदार कौन है? क्या हिंडनबर्ग जैसी विदेशी कंपनियां, जो अपने मुनाफे के लिए मनगढ़ंत आरोप लगाती हैं? या भारतीय राजनीतिक दल, जिन्होंने इस मुद्दे को केवल अपने एजेंडे के लिए इस्तेमाल किया? निवेशकों के लाखों करोड़ रुपये का नुकसान केवल एक आर्थिक घटना नहीं है, यह उस भरोसे की चोट है, जो भारतीय बाजार पर किया गया। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय निवेशकों को न केवल बाजार के जोखिम से, बल्कि ऐसी साजिशों से भी सतर्क रहना होगा।  

Share:

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
- Sponsored Advert -