अहमदाबाद: 15 सितंबर को, श्रावण के शुभ महीने (गुजराती परंपरा के अनुसार, सावन 15 दिन बाद शुरू होता है) के आखिरी दिन, गुजरात के खेड़ा जिले के थसरा इलाके में भगवान शिव की बारात पर क्रूर हमला हुआ। खबरों के मुताबिक, जब हिंदू श्रद्धालु इलाके से जुलूस निकाल रहे थे, तो एक मदरसे से पथराव किया गया। "शिवजी की सवारी" यात्रा के आयोजक विजयदासजी महाराज ने कहा कि हमला पूर्व नियोजित प्रतीत होता है।
Breaking: Muslim mob brutally attacked the Shiv Yatra procession with heavy stone pelting from nearby Mosque ???? area
— Ashwini Shrivastava (@AshwiniSahaya) September 15, 2023
They attacked the procession of Hindu deity in Thasra city of Kheda dist in Gujarat. pic.twitter.com/apDucMDyaq
बताया जा रहा है कि घटना दोपहर करीब तीन बजे की है। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित किया। प्रारंभिक विवरण के अनुसार, थसरा में हर साल श्रावण माह के अंतिम दिन भगवान शिव की बारात निकलती है। इस साल भी तय कार्यक्रम के मुताबिक आज दोपहर करीब एक बजे जुलूस शुरू हुआ। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रतिभागी शामिल हुए। दोपहर करीब तीन बजे जब जुलूस शहर के चौराहे पर पहुंचा, तो पास के एक मदरसे/मस्जिद से हिंदू भक्तों पर पत्थर फेंके गए। जुलूसों में भाग लेने वाले हिंदुओं को यात्रा बीच में ही छोड़कर अपनी जान बचाकर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई और कई लोग शरण लेने के लिए इधर-उधर भागने लगे। इस घटना में दो अधिकारी और एक PSI समेत तीन पुलिस अधिकारियों को चोट आई है। हालाँकि, यह अज्ञात है कि क्या किसी भक्त को चोट लगी है।
गुजरात के खेड़ा जिले के ठासरा शहर मे श्रावण महीने के आखरी दीन शिवजी की शोभायात्रा पर कट्टरपंथीओ द्वारा पत्थरबाजी
— Rahul INC || Mission 2024 || Parody (@RaGa_vincy) September 15, 2023
और पत्थरबाजी किस की छत पर से हो रही है वह आप समझ ही सकते हो#Kheda #GujaratiNews pic.twitter.com/whX7sCKNr4
यात्रा के आयोजक महंत विजयदासजी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि हमला पूर्व नियोजित था। हालाँकि, खबर छपने तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई थी। पुलिस ने कहा कि वे फिलहाल मामले की आगे जांच कर रहे हैं। खेड़ा जिला पुलिस प्रमुख राजेश गढ़िया के अनुसार, जब यात्रा समाप्त होने वाली थी, तब अज्ञात लोगों ने ईंटें और पत्थर फेंके, जिसमें तीन पुलिस अधिकारियों सहित कई लोग घायल हो गए। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया गया है और पड़ोसी डिवीजनों से अतिरिक्त अधिकारियों को बुलाया गया है।
राजेश गढ़िया के मुताबिक स्थिति पर काबू पा लिया गया है और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों में पुलिस की तैनाती बढ़ा दी गई है। उन्होंने आगे कहा कि इस कृत्य में शामिल किसी भी असामाजिक तत्व को बख्शा नहीं जाएगा। फिलहाल आरोपी की तलाश की जा रही है।
गुजरात के खेड़ा में हिंदू त्योहारों पर पथराव का ट्रेंड:-
बता दें कि खेड़ा वही इलाका है जहां पिछले साल नवरात्रि उत्सव तब हिंसक हो गया था जब आरिफ और जहीर नाम के दो युवकों के नेतृत्व में मुस्लिम भीड़ ने हिंदू भक्तों पर पथराव किया था। रिपोर्टों में कहा गया था कि आरिफ और जहीर ने एक भीड़ का नेतृत्व किया था, जिसने नवरात्रि उत्सव के दौरान हंगामा किया था। गाँव के नेताओं ने शांति कायम करने की कोशिश की, लेकिन भीड़ पीछे नहीं हटी। वे वापस लौटे और पथराव शुरू कर दिया. गांव के स्थानीय निवासियों ने कहा कि उन्होंने (मुस्लिम भीड़ ने) क्षेत्र में नवरात्रि समारोह को बंद करने के लिए कहा और कहा कि वहां नवरात्रि नहीं मनाई जा सकती।
इससे पहले, यह बताया गया था कि कैसे खेड़ा में एक मुस्लिम शिक्षक ने छात्रों को नवरात्रि उत्सव के दौरान गरबा करने के बजाय मुहर्रम-शैली के शोक में अपनी छाती पीटने और 'या हुसैन' का नारा लगाने के लिए कहा था। ऐसी भी खबरें आई हैं जहां मुस्लिम पुरुषों ने फर्जी नामों के तहत नवरात्रि स्थल में प्रवेश करने की कोशिश की है। ऐसी रिपोर्टें भी सामने आई हैं जहां कुछ इलाकों में स्थानीय मुसलमानों ने नवरात्रि मनाने का विरोध किया है।
नूंह हिंसा में भी यही पैटर्न:-
बता दें कि, हरियाणा के मेवात के मुस्लिम बहुल क्षेत्र नूंह में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की बृज मंडल जलाभिषेक शोभा यात्रा पर क्रूर पथराव की ऐसी ही एक घटना इस साल जुलाई में हुई थी। झड़पों के कई वीडियो सामने आए थे, जिसमें भीड़ को शत्रुतापूर्ण तरीके से श्रद्धालुओं पर हमला करते हुए "अल्लाहु अकबर" के नारे लगाते और दंगाई गतिविधियों में शामिल होते दिखाया गया था। हरियाणा के नूंह जिले में भीड़ ने श्रावण सोमवार के दिन एक हिंदू धार्मिक जुलूस को रोकने की कोशिश की, पथराव किया और कारों में आग लगा दी, जिससे एक होम गार्ड की गोली मारकर हत्या कर दी गई और लगभग एक दर्जन पुलिसकर्मी घायल हो गए।
जैसे ही हरियाणा के नूंह में धार्मिक जुलूस पर हमला हुआ, पीड़ितों ने खुद मीडिया पर खुलासा किया कि छतों से उन पर पथराव किया गया था, युवा मुस्लिम लड़के और पुरुष पहाड़ी इलाके में चले गए थे और उन पर गोलियां चला रहे थे। उन पर पत्थर, एसिड की बोतलें फेंकी गईं और कई महिलाओं को परेशान किया गया। हिंसा के दौरान, कई महिलाओं और बच्चों (जिनकी तादाद 2000-2500 के बीच थी) ने मंदिर में शरण ली थी और पुलिस ने उन्हें कुछ घंटों बाद ही बचा लिया था।
इसके अलावा, ऐसे अन्य लोग भी थे जिनकी मुस्लिम भीड़ ने बेरहमी से हत्या कर दी थी। एक रिपोर्ट के अनुसार, एक हिंदू भक्त अभिषेक को पहले कट्टरपंथियों ने गोली मारी, फिर उसका गला काट दिया और अगर इतना ही काफी नहीं था, तो क्रोधित मुस्लिम भीड़ ने उसके सिर को एक बड़े पत्थर से कुचल दिया। कुछ ऐसे वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट भी सामने आए थे, जिससे पता चल रहा था कि कट्टरपंथी, जुलूस से कम से कम 2 दिन पहले इस हमले की साजिश रच रहे थे। हरियाणा के मुख्यमंत्री एमएल खट्टर ने भी पुष्टि की थी कि हिंसा वास्तव में पूर्व नियोजित थी और एक बड़ी साजिश का हिस्सा लगती है।
बंगाल रामनवमी जुलुस पर हमला, ट्रेंड वही:-
बता दें कि, इसी साल अप्रैल में रामनवमी पर्व पर निकाले गए जुलुस पर भी इसी तरह हमला हुआ था। बंगाल पुलिस द्वारा निर्धारित किए गए रुट से जुलुस निकाल रहे श्रद्धालुओं पर छतों से पत्थर, बोत्तलें फेंकी गई थी। इस हमले के बाद पटना उच्च न्यायालय के पूर्व चीफ जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी के नेतृत्व में मानवाधिकार संगठन की 6 सदस्यीय टीम हिंसा की सच्चाई का पता लगाने बंगाल पहुंची थी, लेकिन ममता बनर्जी की पुलिस ने उन्हें दंगा प्रभावित इलाके में जाने ही नहीं दिया। जिसके बाद फैक्ट फाइंडिंग टीम ने दंगा पीड़ित लोगों से खुद सामने आकर अपनी बात रखने को कहा और उस आधार पर रिपोर्ट तैयार की।
रिपोर्ट में कहा गया था कि, बंगाल में रामनवमी पर हुई हिंसा सुनियोजित थी। इसके लिए जानबूझकर लोगों को भड़काया गया और दंगे करवाए गए। वहीं, इस मामले की' सुनवाई करते हुए कोलकाता हाई कोर्ट ने कहा था कि, ''रिपोर्ट्स से पता चलता है कि हिंसा के लिए पहले से ही तैयारी कर ली गई थी। आरोप है कि लोगों ने छतों से पत्थर फेंके थे। जाहिर है कि 10-15 मिनट के अंदर तो पत्थर छत पर नहीं लाए जा सकते। यह खुफिया तंत्र की नाकामी है।'' कोलकाता हाई कोर्ट के जज ने यह भी कहा था कि, 'पिछले 4-5 महीनों में उच्च न्यायालय ने बंगाल सरकार को 8 आदेश भेजे हैं। ये सभी मामले धार्मिक आयोजनों के दौरान हुई हिंसा से जुड़े हुए हैं। क्या यह कुछ और नहीं दर्शाता है? मैं बीते 14 वर्षों से जज हूँ। मगर अपने पूरे करियर में ऐसा कभी नहीं देखा।' हिंसा के बाद में जिन श्रद्धालुओं पर हमला हुआ, उन्ही पर आरोप लगाकर कह दिया गया कि, उन्होंने आपत्तिजनक नारे लगाए थे, मुस्लिम इलाकों में घुसे थे, जिससे हिंसा हुई। हालाँकि, रुट तो बंगाल पुलिस ने ही तय किया था, और वो कौन से आपत्तिजनक नारे थे, जिससे लोग भड़के, ये बंगाल पुलिस, कोर्ट में नहीं बता पाई है। हो सकता है कि, 'जय श्री राम' के नारे को ही आपत्तिजनक मान लिया गया हो, क्योंकि कई बार खुद सीएम ममता भी यह नारा सुनकर मंच छोड़ चुकी हैं और रामनवमी के जुलुस में यह नारा तो लगना स्वाभाविक है।
दिल्ली दंगों में ताहिर हुसैन का कबूलनामा:-
बता दें कि, दिल्ली में भी 2020 में बड़ी हिंसा भड़की थी, वो भी उस समय जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आए हुए थे। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी को सांप्रदायिक झड़पें शुरू हुई थीं, जिसमें 53 लोगों की जान चली गई थी और करीब 200 लोग घायल हो गए थे। इस हिंसा के लिए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा नेता कपिल मिश्रा पर आरोप लगाए गए थे। हालाँकि, जब मामला कोर्ट पहुंचा और सबूत एवं तथ्य देखे गए तो अलग ही कहानी निकलकर सामने आई। आम आदमी पार्टी (AAP) का तत्कालीन पार्षद ताहिर हुसैन इस पूरे घटनाक्रम का मास्टरमाइंड निकला और ये केवल दंगा या हिंसा नहीं थी, बल्कि हिन्दुओं पर सुनियोजित हमला था। हालाँकि, उस समय कुछ वामपंथी मीडिया चैनल्स ने ताहिर हुसैन को ही पीड़ित साबित करने की पूरी कोशिश की थी, इसमें कथित फैक्ट चेकर मोहम्मद ज़ुबैर का नाम भी शामिल है। ज़ुबैर ने फैक्ट चेक किया था कि, ताहिर हुसैन पीड़ित थे और उन्होंने ही पुलिस को कॉल कर सुरक्षा मांगी थी। वहीं जब, इस मामले की सुनवाई कड़कड़डूमा कोर्ट के सेशन जज पुलत्स्य ने की, तो ताहिर हुसैन के साथ रियासत अली, गुलफाम, शाह आलम, रशीद शैफी, अरशद कय्यूम, लियाकत अली, मोहम्मद शादाब, मोहम्मद आबिद और इरशाद अहमद पर आरोप तय किए गए।
तमाम सबूत और तथ्य देखने के बाद दिल्ली की एक कोर्ट ने कहा था कि, 'दूसरों पर अंधाधुंध गोलीबारी यह बताती है कि यह भीड़ जानबूझकर हिंदुओं को मारना चाहती थी। यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोपी शख्स, इस भीड़ के इस मकसद से बेखबर थे। स्पष्ट है कि, यह एक गैरकानूनी सभा थी, जो इसी उद्देश्य (हिन्दुओं की हत्या) के लिए काम कर रही थी।' जज ने कहा था कि, 'उपरोक्त परिस्थितियाँ कहीं भी यह संकेत नहीं देती हैं कि यह (हिंसा) एक अचानक हुआ कृत्य था, बल्कि यह साफ़ तौर प्रकट करता है कि आरोपी ताहिर हुसैन की इमारत ई-17 से हिंदू समुदाय की संपत्तियों में तोड़फोड़ और आगजनी करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इस मकसद को पूरा करने के लिए विस्तृत तैयारी की गई थी।'
ये कुछ मुख्य मामले हैं, इनके अलावा दिल्ली के जहांगीरपुरी, गुजरात के वड़ोदरा, बिहार के बगहा और मोतिहारी, झारखण्ड के जमशेदपुर, लोहरदगा और पूर्वी सिंहभूम, मध्य प्रदेश के खरगोन और सेंधवा, कर्नाटक के कोलार, राजस्थान के करौली जैसे देश के कई हिस्सों में हिन्दू त्योहारों पर इसी पैटर्न में पथराव और हमला हो चूका है। अब तो ये इतना सामान्य हो गया है कि, मेनस्ट्रीम मीडिया भी इसे अधिक तवज्जो नहीं देता। अब तो मीडिया के मन में एक ये डर भी बैठ गया है कि, यदि उन्होंने इस तरह की खबरें दिखाई, तो कहीं नफरत फैलाने वाला घोषित कर उनका 'बहिष्कार' न कर दिया जाए। शायद इसलिए एक पत्रकार ने आतंकियों की गोली से हुई फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की हत्या पर केवल उन 'गोलियों को ही लानत' भेजी थी, जिससे दानिश की जान गई, लेकिन तालिबानी आतंकियों पर एक शब्द नहीं कहा था। शायद उन्हें पहले से ही अंदेशा था कि, आतंकियों को लानत भेजने से नफरत फ़ैल सकती है और बहिष्कार हो सकता है ?