2011 में हुई जनगणना के हिसाब से देश के आठ राज्यों में हिन्दू अल्पसख्यक है. जिसको लेकर बड़ा फैसला 14 जून को होने की संभावना है. इस मुद्दे पर बीजेपी के दिग्गज नेता मुख़्तार अब्बास नकवी का कहना है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग सभी तरह के क़ानूनी पहलु पर विचार कर रहा है और जल्द ही मुद्दे को सुलझा लिया जायेगा. वही एनसीपी नेता मजीद मेनन इसका विरोध करते हुए कहते है कि देश के कानून राज्यों के हिसाब से नहीं बल्कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को अपने हिसाब से चलना होगा और देश में हिन्दू कई जगहों मोहल्लो में काम है तो इस पर में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग किस तरह से नियम बनाएगा.
वही कश्मीर में 68 फीसदी मुस्लिम आबादी अल्पसंख्यक का तमगा लिए हुए है. कश्मीर बीजेपी प्रवक्ता अनिल गुप्ता का कहना है कि यदि देश में कही भी हिन्दू अल्पसंख्यक है और वे कानूनन नियमो के दायरे में आते है तो उन्हें इस हक़ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. नेशनल कॉन्फ्रेंस के अली मोहम्मद सागर भी इस बात से इत्तफाक रखते है कि कानून के हिसाब से जिन राज्यों में हिन्दू कम है उन्हें मुस्लिम और ईसाइयों की तरह अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए. 14 जून को एक बड़ा फैसला होना है जिसमे एक देश और दो तरह के कानून की बहस होना है और इस सवाल का जवाब भी आना है कि सियासी सहानुभूति की आड़ में हिंदुस्तान में हिन्दू होने की सजा कब तक सहेगा हिन्दू.
बहरहाल राष्ट्रिय अल्पसंख्यक आयोग के नियमों की विवेचना की जा रही. इसके आलावा कई राज्यों में मुस्लिम और ईसाई बहुसख्यक होने के बावजूद अल्पसंख्यक का दर्जा लेकर तमाम सरकारी सुविधाएं और सहानुभूति बटोर रहे है. ऐसे में सवाल उठता है कि हिंदुस्तान में हिन्दू होने की सजा कब तक भुगतेगा हिन्दू. हिंदुस्तान में कानूनों से खेलते सियासतदारों की कारस्तानियों का खामियाजा सालों से हिदुस्तान के हिन्दू भुगत रहे है. सिर्फ जाति ही अल्पसंख्यक होने का मानक है जबकि परिभाषा तो संख्यात्मकता को लेकर बनाई गई है.
आठ राज्यों में हिंदुस्तानी होने की सजा काटता हिन्दू अल्पसंख्यक
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