हिन्दू धर्म की अगर बात करें तो यहां पर हर घर में भगवान की मुर्ति के दर्शन होना स्वभाविक सी बात है। हर घर में हमें भगवान की मुर्ति देखने को मिलती है इसका मतलब यही है की हिन्दू धर्म में प्राचीन समय से ही मुर्ति पूजा को अधिक मान्यता दी गई है। लेकिन अगर अन्य लोगों की बातों को अगर मानते हैं तो वह लोग मुर्ति पूजा को अंधविश्वास का दर्जा देते है। और उसे अंधविश्वास भी मानते हैं। आज हम यहां पर इसी विषय पर चर्चा करने वाले हैं। आज हम यहां पर देखेगें की मूर्ति पूजा के पीछे का विज्ञान।
इसके लिए हम आपको बतादें की जिस जगह को आप भगवान का घर मानते हैं उसे मंदिर कहते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं की मंदिर का मतलब क्या होता है। मंदिर का अर्थ है मन के अंदर और इसका शाब्दिक अर्थ घर या स्थान होता है। मंदिर एक ऐसी जगह है जहां सकारात्मक ऊर्जा का संचालन होता है और परमात्मा के मिलन के लिए पहली सीढ़ी ही सकारात्मक ऊर्जा-शक्ति जो हमें मंदिर में मिलती है जिस प्रकार छोटे होते हुए हमे किसी भी चीज़ का ज्ञान नहीं था परन्तु धीरे.धीरे हमारे अंदर जिज्ञासा होने लगती है और हम जानने की कोशिश करते हैं।
कुछ ऐसा ही है यहां भी . पहले हम मंदिर जाएंगे, फिर और जानने के लिए हम रामायण, गीता जैसे ग्रंथो को पढ़ते हैं। जिज्ञासा बढ़ने के बाद हम पुराण, उपनिषद, और फिर वेद-शास्त्र पढ़ते हैं, जिससे हमे ब्रह्मज्ञान की समझ आने लगती है जब हम इन सीढ़ियों को पार करते हैं तो हमें मूर्ति नहीं मूर्ति के रूप में ईश्वर के दर्शन होते हैं। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि ईश्वर सर्वव्यापी है यानि हर जगह मौजूद है। यदि भगवान हर चीज़ में है तो मूर्ति में भी होगा, बस श्रद्धा-भाव से देखने की ज़रूरत है। बतादें मंदिर एक शरीर के समान है और उस शरीर के हृदय में ईश्वर की मूर्ति राखी हुई है।
जहाँ तक अन्धविश्वास की बात है तो ऋषियों ने कठिन तप कर इस ब्रह्मज्ञान को जाना है उसके पश्चात उन्होंने ग्रंथ बनाये जिससे हमारा मार्ग-दर्शन हो पाए। मंदिरों और मूर्ति-पूजा के पीछे का विज्ञान यही कहता है कि मंदिर में जाने से सकारात्मक ऊर्जा.शक्ति हमारे शरीर और मस्तिष्क को स्वच्छ कर हमें सही दिशा दिखने की शक्ति देती है। इसे अन्धविश्वास का नाम देना गलत होगा।
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