'मंदिर मांगने वाले हिन्दू तानाशाह और अत्याचारी..', अयोध्या मामले पर बोले SC के पूर्व जज

'मंदिर मांगने वाले हिन्दू तानाशाह और अत्याचारी..', अयोध्या मामले पर बोले SC के पूर्व जज
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नई दिल्ली: 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया, जिसमें राम मंदिर निर्माण के पक्ष में निर्णय दिया गया। यह मामला दशकों तक अदालतों में चला और अंततः हिंदू पक्ष की जीत हुई। इसके बाद मंदिर निर्माण पूरा हो गया, और लाखों श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। हालांकि, इस फैसले के बाद भी समय-समय पर कुछ लोग इसे लेकर अपनी असहमति व्यक्त करते रहे हैं। 

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रोहिंटन नरीमन ने एक भाषण के दौरान इस फैसले की आलोचना की। उन्होंने इसे 'न्याय का मजाक' और 'धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन' बताया। नरीमन ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद द्वारा राम मंदिर की मांग करना 'तानाशाही' और 'अत्याचार' जैसा था। उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद को फिर से ना बनाना न्याय का अपमान है। नरीमन के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कई लोगों ने कहा कि हिंदू पक्ष ने कानून के दायरे में रहकर यह लड़ाई लड़ी। कोर्ट के माध्यम से न्याय पाने के बाद ही मंदिर का निर्माण हुआ। नरीमन ने हिंदुओं पर कानून का पालन न करने का आरोप लगाया, लेकिन तथ्य बताते हैं कि मंदिर के लिए कानूनी प्रक्रिया का पूरा पालन किया गया। 

भाषण में उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामलों में बरी हुए नेताओं पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि इन नेताओं को सजा मिलनी चाहिए थी। इसके अलावा, उन्होंने उन याचिकाओं की आलोचना की जो उन मस्जिदों को चुनौती देती हैं जो संभवतः मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं। अगर जस्टिस नरीमन को विश्वास नहीं हो रहा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं, तो उन्हें बाबरनामा, आईने अकबरी जैसी पुरानी पुस्तकें पढ़ने की भी जरूरत नहीं,  वे TV चालु करके आज का बांग्लादेश भी देख सकते हैं

नरीमन ने 1991 के कानून को सख्ती से लागू करने की बात कही, जो धार्मिक स्थलों के स्वरूप में बदलाव को रोकता है। उन्होंने इसे सहिष्णुता बनाए रखने का तरीका बताया। लेकिन उनके इस सुझाव पर भी विरोध हुआ, क्योंकि इसे हिंदू धर्म स्थलों की ऐतिहासिक बर्बरता के खिलाफ न्याय पाने में बाधा माना गया। इस भाषण से यह स्पष्ट होता है कि राम मंदिर का मामला अभी भी समाज के कुछ वर्गों के लिए विवाद का विषय बना हुआ है, जबकि बहुसंख्यक इसे न्याय की जीत मानते हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज के बयानों पर कुछ लोग सवाल भी उठा रहे हैं कि जब जस्टिस नरीमन हिन्दुओं के प्रति इस पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं, तो वे सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए कैसे बहुसंख्यक समाज के साथ इंसाफ किए होंगे ? 

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