काशी-मथुरा समेत किसी स्थल पर दावा नहीं कर सकेंगे हिन्दू..! जमीयत की याचिका सुनेगा SC

काशी-मथुरा समेत किसी स्थल पर दावा नहीं कर सकेंगे हिन्दू..! जमीयत की याचिका सुनेगा SC
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नई दिल्ली: 4 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई होने वाली है, जिसमें जमीअत उलमा-ए-हिंद की ओर से इस कानून के पक्ष में दलीलें दी जाएंगी। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद ने बताया कि इस कानून के तहत, संभल की जामा मस्जिद और अजमेर दरगाह पर हिंदूओं के दावे को लेकर एक याचिका दायर की गई है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। 

सुप्रीम कोर्ट की पीठ इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करेगी, जिसमें जमीअत उलमा-ए-हिंद ने शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया था। यह सुनवाई देशभर में बढ़ते विवादों के संदर्भ में अहम मानी जा रही है। इस मुद्दे पर जमीअत उलमा-ए-हिंद के वकील उपासना स्थल कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी अपनी दलीलें पेश करेंगे। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि धार्मिक स्थलों को लेकर निरंतर नए विवाद खड़े किए जा रहे हैं, जिससे देश में सांप्रदायिक तनाव और भय का माहौल बन रहा है। जमीअत उलमा-ए-हिंद का मानना है कि अदालतें इन मामलों में निष्पक्ष तरीके से सुनवाई करें, ताकि देश का माहौल शांतिपूर्ण रहे। 

यदि सुप्रीम कोर्ट पूजा स्थल अधिनियम को समर्थन देती है, तो इससे यह सुनिश्चित होगा कि किसी भी गैर-मुस्लिम समुदाय द्वारा मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर कोई दावे नहीं किए जा सकते, भले ही वह स्थल पहले अन्य धर्मों के द्वारा उपयोग में लाया गया हो और बाद में मुगल आक्रांताओं द्वारा उन्हें तोड़कर मस्जिदें बना दी गईं हों, लेकिन वो अब मस्जिदें ही रहेंगी और मुस्लिम समुदाय के कब्जे में ही रहेंगी।

सीधे शब्दों में कहें तो मुस्लिम समुदाय ने जितना कब्ज़ा कर रखा है, उसकी जांच या सुनवाई नहीं हो पाएगी, ये सवाल भी नहीं उठाया जा सकेगा कि उसे किसी काल में मुगलों या नवाबों ने मजहबी नफरत में तोड़ दिया था और वहां मस्जिद बना दी थी। अगर सुप्रीम कोर्ट कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए इस कानून पर मुहर लगा देता है, तो काशी-मथुरा से लेकर संभल-धार तक मुस्लिम समुदाय के पास इन स्थलों पर अपने अधिकारों की सुरक्षा होगी और इन पर किसी प्रकार का विवाद नहीं उठ सकेगा। हालांकि, यह फैसला संविधान द्वारा दिए गए न्याय के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि न्याय तो यही कहता है कि जो चीज़ जिसकी है, उसे मिले, लेकिन ये कानून एक रेखा खींचता है, इसका कहना है कि 1947 में जिसका कब्जा था, संपत्ति उसकी है, अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या निर्णय लेता है।

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