'हां, औरंगज़ेब ने काशी और मथुरा के मंदिर तोड़े थे...', क्या ज्ञानवापी केस में काम आएगा इरफ़ान हबीब का बयान ?

'हां, औरंगज़ेब ने काशी और मथुरा के मंदिर तोड़े थे...', क्या ज्ञानवापी केस में काम आएगा इरफ़ान हबीब का बयान ?
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नई दिल्ली: देश में मंदिर मस्जिद को लेकर सियासी बहस छिड़ी हुई है। ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग पाए जाने के बाद ये विवाद और गहरा होता जा रहा है। मथुरा जन्मभूमि, कुतुब मीनार और ताजमहल को लेकर भी विवाद गहराता जा रहा है। ऐसे में इतिहासकार इरफान हबीब ने ऐस बयान दे दिया जो विवादों को जन्म दे सकता है। इरफ़ान हबीब ने कहा है कि हां औरंगजेब ने ही मथुरा काशी के मंदिर तोड़े थे। उस जमाने में छिपकर काम नहीं होता था। उन्होंने बताया कि इतिहास में मंदिर ध्वस्त करने की तारीख तक दर्ज है।  

इरफान हबीब ने कहा कि बनारस का मंदिर औरंगजेब ने ध्वस्त किया था और मथुरा का मंदिर भी इसमें शामिल है। जिसे राजा वीर सिंह बुंदेला ने जहांगीर के शासनकाल में बनावाया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि दो मुख्य मंदिर हैं जिसे औरंगजेब ने तुड़वाया था। इरफान हबीब का कहना है कि ऐसी कोई बात नहीं जो नई हो। सब बातें इतिहास में दर्ज हैं। ऐसा दावा किया जा रहा है कि इतिहासकारों ने कुछ नहीं बताया ये गलत है। सभी बातें इतिहास में दर्ज हैं, मगर बात ये है कि आप कितना पीछे जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि मंदिर तोड़कर औरंगजेब ने गलत काम किया था, वैसे ही क्या अब सरकार भी गलत कार्य करेगी। इतिहास की तारीख में मंदिर तोड़ने की घटना दर्ज है। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि जो चीज 1670 में बन गई हो, तो क्या आप आज इसे तोड़ सकते हैं, ये स्मारक एक्ट के खिलाफ है।

उन्होंने कहा कि जो मंदिर ध्वस्त किए गए, उसके पत्थर मस्जिदों में लगाए गए। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने की बात कही जा रही है, मगर जो याचिका दायर की गई थी उसमें इस बात का उल्लेख तक नहीं था। शिवलिंग बनाने का एक कायदा होता है। हर चीज को शिवलिंग नहीं बता सकते। जो मुकदमा दाखिल किया गया था उसमें शिवलिंग का जिक्र नहीं था। मगर अब शिवलिंग को मुद्दा बनाकर पेश किया जा रहा है। वहीं, इरफ़ान हबीब के इस बयान के बाद ये बात तो स्पष्ट है कि औरंगज़ेब ने ही वो मंदिर तोड़े थे, जो हिन्दुओं के लिए मक्का-मदीना या वैटिकन सिटी की तरह हैं। लेकिन क्या अब भी हिन्दुओं को उन स्मारकों में पूजा का अधिकार नहीं मिलेगा ? क्या आतताइयों द्वारा किए गए गलत कार्यों को सुधारा नहीं जाना चाहिए और क्या मुस्लिम समुदाय को खुद आगे आकर इन गलतियों को स्वीकार करते हुए इन्हे सुधारने की पहल नहीं करनी चाहिए, जिससे देश में भाईचारा स्थापित हो सके ? 

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