आज फिर हम आपके सामने 'गधों' की बात लेकर आये है, क्योकि जबसे गधे चुनाव में शामिल हुए है, तब से इनका ओहदा बहुत बढ़ गया है. ऐसे में अब 'गधों को गधा' कहना भी थोड़ा अजीब सा लगता है. उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रचार में जहा गधों को सियासत के लिए इस्तेमाल किया गया है, वही अब होली में भी गधों का महत्त्व बहुत बढ़ गया है. जिसमे होली के आने से पहले ही बाजारों में गधा पिचकारी के रूप में 'गधों' की धूम मची हुई है. हर तरफ जहा तरह तरह की रंग बिरंगी पिचकारियों के साथ अखिलेश यादव, डिंपल यादव, नरेन्द्र मोदी आदि लोगो के नामो पर होली खेलने की पिचकारियां बिक रही है, वही इन सब पर गधा पिचकारी भारी पड़ रही है.
पुरे देश की तो बात नही कर सकते किन्तु उत्तर प्रदेश में कुछ जगहों पर अखिलेश पिचकारी, मोदी पिचकारी और डिंपल पिचकारी के साथ गधा पिचकारी भी ससम्मानित दुकानों की शोभा बढ़ रही है. ऐसे में गधा पिचकारी ना सिर्फ महंगी बिक रही है बल्कि गधों ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि वे भी लोगो को रोजगार देने में पीछे नही है. उनकी भी डिमांड लोगो के बिच में बनी हुई है. और वे अब इसी तरह समाजसेवा करके अपनी इस गधेमयी परंपरा को आगे ले जायेंगे.
चुनावी सभाओं में जहा पूरी सियासत गधों पर टिकी हुई नजर आयी वही अब रंगों का त्यौहार होली भी गधों के रंग में रंग गया है, जिसमे बच्चो द्वारा होली के दिन गधा पिचकारी का भरपूर इस्तेमाल किया जायेगा. गधा पिचकारी की एक और खास बात यह है कि चुनाव के परिणाम आने के बाद जित की होली चाहे जो भी खेले, किन्तु गधा पिचकारी हर दल की पसन्द बनेगा. गधे होली के इस रंग में भले ही शामिल ना हो किन्तु यह होली सिर्फ गधों की होली होगी. चाहे वो रंगों की हो या फिर चुनावी. गधों का चुनावी होली में यह योगदान हमेशा याद रखा जायेगा.
चुनाव में बढ़ रहा है गधों का महत्व, फिर भी आखिर "गधे तो गधे" है