इन 141 गांवों में कभी नहीं खेली जाती होली, इस वजह से डरते हैं लोग

इन 141 गांवों में कभी नहीं खेली जाती होली, इस वजह से डरते हैं लोग
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होली का त्योहार वैसे तो सभी जगह मनाया जाता है लेकिन उत्तराखंड के चंपावत जिले में कुछ ऐसे गांव भी हैं जहां लोग होली का त्योहार नहीं मनाते हैं। जी हाँ और इसके पीछे यहां के लोगों को डर है। जी दरअसल डीडीहाट तहसील के दूनाकोट, आदिचौरा, जौरासी, नारायण नगर क्षेत्र के 141 गांवों में आज भी होली का रंग नहीं लगाया जाता है। आप सभी को बता दें कि इन गांव के लोग अनहोनी और विभिन्न भ्रांतियों के डर से होली खेलने से परहेज करते हैं। वहीं दूनाकोट निवासी शेर सिंह चुफाल का कहना है कि इन गांवों में होली मनाने की शुरूआत उनके बुजुर्गों ने की थी। लेकिन जैसे ही मथुरा से होली की चीर को उनके गांवों लाया गया, अनहोनी होने लगीं। इसको देखते हुए बुजुर्गों ने होली नहीं मनाने का निर्णय लिया। दूसरी तरफ बोरा गांव निवासी गिरधर बोरा का कहना है, 'उनके गांव में होली की शुरूआत करने के लिए बुजुर्गों ने मथुरा से चीर मंगाई थी लेकिन गांव पहुंचने से पहले ही चीर चोरी हो गई। तब से उनके गांव में होली नहीं खेली जाती है।'

वहीं आदिचौरा के बलवंत सिंह मेहरा का कहना है कि जहां आठू पर्व मनाया जाता है, उन गांवों में होली नहीं होती है। हालांकि हाट, धौलेत, सिटोली, मिर्थी सहित इन क्षेत्रों में रहने वाले ब्राह्मण परिवारों और गांवों में आठूं के साथ-साथ होली का पर्व भी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसी के साथ ग्राम प्रधान नारायण नगर वीवीएस कन्याल ने बताया कि, 'हमारी ग्राम सभा में आठू का पर्व मनाया जाता है। बुजुर्गों से सुना है कि जहां सातूं आठूं मनाते हैं वहां होली नहीं होती है। इसी परंपरा के चलते हमारे गांव में होली नहीं मनाई जाती है।' वहीं खोली चरमा गांव निवासी मनोज जिमवाल ने बताया, 'हमारे गांव खोली चरमा में होली न मनाने की परंपरा पहले से चली आ रही है। गांव में आठूं पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसी पर्व के चलते होली नहीं खेली जाती है। बुजुर्गों का भी यही मानना है।'

इसी के साथ अजेड़ा गांव युवक मंगल दल अध्यक्ष गोविंद सिंह खोलिया ने बताया कि, 'चैतोल का पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। होली न मनाने का एक कारण यह भी हो सकता है कि आसपास के गांवों में भी होली नहीं मनाई जाती है। यही परंपरा चली आ रही है।'

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