हर साल मनाया जाने वाला होली का पर्व इस साल भी मनाया जाने वाला है। 18 मार्च को होली का पर्व मनाया जाएगा हालाँकि उससे पहले 17 मार्च को होलिका दहन होगा। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं होलिका दहन से जुडी कहानी।
होलिका दहन से जुडी कहानी- हिरण्यकश्यप सतयुग में जन्मा एक दैत्य राजा था जो अति-पराक्रमी तथा शक्तिशाली था। उसका जन्म महर्षि कश्यप के कुल में हुआ था। साथ ही उसको भगवान ब्रह्मा से विचित्र वरदान मिला था। भगवान ब्रह्मा से मिले इसी वरदान के कारण स्वयं नारायण को नृसिंह अवतार (Lord Narasimha) लेकर उसका वध करना पड़ा था। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था जो उसकी मृत्यु के पश्चात उसका उत्तराधिकारी बना था। हिरण्यकश्यप दैत्यों का राजा था। उसका भाई हिरण्याक्ष नामक राक्षस था, जिसे भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर वध कर दिया था। इसलिए हिरण्यकश्यप उन्हें अपना दुश्मन मानता था। हिरण्यकश्यप विवाह का विवाह कयाधु नाम की स्त्री से हुआ था जिससे उसे प्रह्लाद नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जब हिरण्यकश्यप भगवान ब्रह्मा की तपस्या कर रहा था तो उस समय देवताओं ने उसकी नगरी पर आक्रमण करके वहां अपना शासन स्थापित कर लिया था। तब देवर्षि नारद मुनि ने कयाधु की रक्षा की थी और उसे अपने आश्रम में स्थान दिया।
वहीं पर हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद का जन्म हुआ था। देवर्षि नारद मुनि की संगत में रहने के कारण वह विष्णु भगवान का भक्त बन गया था। कई सालों तक तपस्या करने के बाद हिरण्यकश्यप को भगवान ब्रह्मा ने दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वरदान मांगा कि "मेरी मृत्यु मनुष्य या पशु के हाथों न हो, न किसी अस्त्र-शस्त्र से, ना दिन व रात में, ना भवन के बाहर और ना ही अंदर, न भूमि ना आकाश में हो मेरी मृत्यु हो। ब्र्हमा ने उसे ये वरदान दे दिया। इस वरदान को पाकर वह अत्यंत शक्तिशाली हो गया था और उसने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया। ब्रह्मा से वरदान पाकर हिरण्यकश्यप का अत्याचार बढ़ गया। उसने अनेक अधर्म के कार्य किये और ऋषि-मुनियों की हत्याएं करवा दी। वह स्वयं को भगवान मानने के लिए लोगों को बाध्य करने लगा, लेकिन स्वयं उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्ति में लीन रहता। जब ये बात हिरण्यकश्यप को पता चली तो उसने अपने पुत्र को धर्म के मार्ग से हटने के लिए समझाया, लेकिन प्रह्लाद नहीं माना। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने का निर्णय लिया। हिरण्यकश्यप की बहन का नाम होलिका था। होलिका को भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि जला नही सकती। इसी का लाभ उठाकर हिरण्यकश्यप ने होलिका को कहा कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए ताकि प्रह्लाद वहां से भाग न सके और वह उसी अग्नि में जलकर ख़ाक हो जाए। होलिका ने ऐसा ही किया। लेकिन होलिका अग्नि में भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गया। प्रह्लाद की भक्ति से परेशान होकर एक दिन हिरण्यकश्यप ने उससे एक दिन पूछा कि 'क्या तुम्हारा भगवान इस खंबे में भी है।
प्रह्लाद ने कहा "हां"। हिरण्यकश्यप ने क्रोध में वह खंभा तोड़ डाला। तभी उसमें से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए। भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को उसके भवन की चौखट पर ले जाकर, संध्या के समय, अपने गोद में रखकर नाखूनों की सहायता से उसका वध कर दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने उसको मिले वरदान की काट ढूंढ़कर हिरण्यकश्यप का अंत किया तथा उसका उत्तराधिकारी भक्त प्रह्लाद को बनाया। कहा जाता है अपने पूर्व जन्म में हिरण्यकश्यप तथा उसका छोटा भाई हिरण्याक्ष भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम के प्रहरी थे जिनका नाम जय-विजय था। एक दिन उन्होंने भगवान ब्रह्मा के चार मानस पुत्रों का अपमान कर दिया, क्रोधित होकर उन्होंने जय-विजय को तीन जन्म तक असुर कुल में जन्म लेने का श्राप दिया। जब उन्होंने क्षमा याचना की थी मानस पुत्रों ने कहा कि उनका वध भगवान विष्णु के हाथों होगा। जय-विजय का अगला जन्म हिरण्यकश्यप तथा हिरण्याक्ष के रूप में हुआ
इसके बाद उनका जन्म महर्षि विश्रवा के कुल में रावण के रूप में हुआ, जो लंका का राजा था। और हिरण्याक्ष का जन्म उसके छोटे भाई कुंभकर्ण के रूप में हुआ था। इन दोनों का वध स्वयं भगवान विष्णु के ही अवतार श्रीराम के हाथों हुआ था।
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