32 रुपए का 'पेट्रोल' आप तक पहुँचने में कैसे हो जाता है 90 रुपए लीटर ? देखिए 'तेल' का अनोखा खेल

32 रुपए का 'पेट्रोल' आप तक पहुँचने में कैसे हो जाता है 90 रुपए लीटर ? देखिए 'तेल' का अनोखा खेल
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नई दिल्ली: पेट्रोल-डीजल के भाव इन दिनों आसमान छु रहे हैं। साल 2021 में जिस तरह से ईंधन के दाम बढ़े हैं, उससे पेट्रोल-डीजल के भाव अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गए हैं। इसके साथ ही केंद्र की मोदी सरकार को इस मुद्दे पर चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। आलोचना होनी भी चाहिए, क्योंकि यह सरकार ही बढ़ती महंगाई के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाते हुए सत्ता में आई थी और आज वही सरकार ईंधन के बेतहाशा बढ़ते दामों पर मौन साधे हुए है।

ऐसे में क्या आप जानते हैं कि तक़रीबन 32 रुपये का एक लीटर मिलने वाला पेट्रोल आपको इतना महंगा कैसे मिल रहा है।  दरअसल, भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमत क्रूड आयल के अलावा उत्पाद शुल्क (Excise Duty), राज्यों के वैल्यू एडेड टैक्स (VAT), कंपनियों का मुनाफा, रिफाइनरी चार्ज, फ्रेट चार्ज और डीलर्स के कमीशन के आधार पर निर्धारित की जाती है।  उदहारण के तौर पर, 16 फ़रवरी को दिल्ली में पेट्रोल की बेसिक कीमत 31.82 रुपए प्रति लीटर थी, लेकिन इसके बाद इसमें उत्पाद शुल्क 32.90, डीलर कमीशन 3.68, VAT टैक्स 20.61 और परिवहन शुल्क 0.28 पैसे जुड़ने के बाद इसकी कीमत 89.29 हो गई थी। वहीं, इसी दिन राजधानी में डीजल 79.70 प्रति लीटर के भाव बिका था, जबकि उसकी बेसिक कीमत मात्र 33.46 रुपए थी, लेकिन इसमें उत्पाद शुल्क 31.80, डीलर कमीशन 2.51, VAT टैक्स 11.68 और परिवहन शुल्क 0.25 पैसे जुड़ने के बाद इसकी कीमत 79.20 हो गई थी। इंडियन ऑयल की वेबसाइट के अनुसार, दिल्ली में आज पेट्रोल 90.93 रुपये और डीजल 81.32 रुपये प्रति लीटर की दर से बिक रहा है। 
 
अगर टैक्स में हुई बढ़ोतरी की बात करें तो, जनवरी 2020 में एक लीटर पेट्रोल के दाम का 26.6 फीसद और डीजल का 23.3 फीसद एक्साइज ड्यूटी लगता था।  लेकिन आज केंद्र सरकार पेट्रोल पर 32.90 रूपये प्रति लीटर का उत्पाद शुल्क वसूलती है, जबकि डीज़ल के लिए यह 31.80 रुपये है. इसके अलावा इसमें राज्य सरकार का टैक्स (VAT) अलग से जुड़ा होता है, जो सभी राज्यों का अलग-अलग है, किन्तु अगर इसका औसत देखा जाए तो ये पेट्रोल पर लगभग 20 रुपए प्रति लीटर होता है, जबकि डीजल पर लगभग 12 रुपए।  

क्या हो सकती है वजह ? 

बता दें कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने में अंतर्राष्ट्रीय बाजार की भी बड़ी भूमिका रहती है, अगर वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा होता है, तो इसका सीधा असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ता है। अगर हम कोरोना के चलते लगाए गए लॉकडाउन की बात करें तो उस समय वाहन आदि न चलने से ईंधन की कीमत में भारी गिरावट आई थी,  साथ ही कोरोना महामारी के दौर में क्रूड ऑयल के उत्पादन को तगड़ा झटका लगा था। दरअसल, लॉकडाउन में लोग अपने घरों में कैद रहे और वाहनों और इंडस्ट्री में ईंधन का इस्तेमाल बहुत ही कम हुआ।  पूरी दुनिया में लगे लॉकडाउन का सीधा असर क्रूड ऑयल (कच्चा तेल) उत्पादक देशों पर देखने को मिला। इसके चलते वैश्विक स्तर पर क्रूड ऑयल की कीमतों में भारी गिरावट आई, जिससे कई देशों में पेट्रोल-डीजल के भाव कम हो गए। उस दौरान, देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल 69.59 प्रति लीटर और डीजल 62.29 प्रति लीटर बिक रहा था। 

किन्तु लॉकडाउन खुलने के बाद ईंधन की खपत तेजी से बढ़ी और क्रूड आयल के दाम भी। कोरोना महामारी की शुरुआत में क्रूड ऑयल की कीमत 20 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गई थी। लेकिन इसके बाद इसमें वृद्धि होनी शुरू हुई और गत वर्ष अक्टूबर तक यह 40 डॉलर प्रति बैरल के आंकड़े को पार कर गई और अगर आज की बात करें तो कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बिक रहा है, जिसका असर ईंधन की कीमतों पर पड़ रहा है। यहां ये भी बता देना जरुरी है कि, जब क्रूड आयल महंगा होता है, तो तेल कंपनियां बढ़ती कीमतों का हवाला देकर ईंधन की कीमतें तो बढ़ा देती है, लेकिन कच्चे तेल के सस्ते होने पर इसका फायदा उपभोक्ता तक नहीं पहुँचने देती, यानी पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम नहीं करती या मामूली कटौती कर मुनाफा कमाने लगती हैं।  

क्या कर सकती है सरकार ?

यह सभी जानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था फिलहाल किस स्थिति में है, ऊपर से कोरोना महामारी के दौरान भी सरकारी खजाने को बड़ा झटका लगा है। लॉकडाउन में आर्थिक गतिविधियां ठप्प रहने से सरकार के राजस्व में भारी कमी आई है। अब सरकार पेट्रोल-डीजल से प्राप्त होने वाले राजस्व से उस घाटे को भरने की कोशिश में लगी हुई है। यह एक कारण हो सकता है, जिसके चलते भारी विरोध के बाद भी सरकार ईंधन पर लगने वाले टैक्स को कम करने के मूड में नहीं दिख रही है। 

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