नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के मौसम में, लगातार विपक्षी दल जाति जनगणना (Caste Census) की वकालत कर रहे थे और इसे मास्टरस्ट्रोक बता रहे थे। राहुल गांधी ने देश के कोने कोने में जोर शोर से इसका वादा किया था। हालाँकि, ये अलग बात है कि, राहुल के पूर्वज जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक इसके विरोधी रहे और इसे देश बांटने वाली योजना के रूप में देखा। लेकिन, अब विपक्षी दलों के इस दावे के तोड़ के रूप में आंध्र प्रदेश से एक नई अवधारणा उभरी है। तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के प्रमुख और आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने कौशल जनगणना (Skill Census) का विचार पेश किया, जिसे उन्होंने एक बेहतर विकल्प बताया है। आंध्र विधानसभा चुनाव में अपनी जीत के बाद, नायडू ने कौशल जनगणना योजना पर हस्ताक्षर किए। तो, कौशल जनगणना क्या है, और आंध्र सरकार इसके साथ क्या हासिल करना चाहती है? क्या ये वाकई राहुल गांधी की जाति गिनो योजना से बेहतर है ? आइए इस बारे में कुछ तथ्यों पर गौर करते हैं।
चंद्रबाबू नायडू ने बताया कि उनके सहयोगी पवन कल्याण ने जाति जनगणना के विकल्प के रूप में कौशल जनगणना का प्रस्ताव रखा था। नायडू ने कहा कि, "मैंने पवन कल्याण गारू से कहा कि हमें जाति जनगणना करवानी चाहिए। लेकिन उन्होंने एक बेहतर विचार पेश किया और इसके बजाय कौशल जनगणना का प्रस्ताव रखा। यह आप सभी से एक वादा है।" कौशल जनगणना का उद्देश्य "लोगों की उत्पादकता बढ़ाना" है। इसे TDP और पवन कल्याण की जनसेना पार्टी (JSP) ने अपने संयुक्त घोषणापत्र में प्रमुखता से शामिल किया था। प्रत्येक भारतीय की जाति गिनने के बजाय उनके कौशल पर ध्यान देना एक अच्छा कदम माना जा रहा है, जिससे लोगों का कौशल-हुनर बढाकर उनकी उत्पादकता बढ़ाई जा सके। YSR कांग्रेस सरकार की "मुफ्तखोरी संस्कृति" की आलोचना करने वाली टीडीपी, सतत विकास मॉडल की आवश्यकता पर जोर देती है और विपक्ष की जातिगत जनगणना के बजाए कौशल जनगणना पर जोर देती है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित कई विपक्षी नेताओं ने सत्ता में आने पर जाति जनगणना का वादा किया। उन्होंने लोगों के बीच देश के धन का पुनर्वितरण करने और संस्थागत सर्वेक्षण का भी प्रस्ताव रखा। इस बीच, एक इंटरव्यू में चंद्रबाबू नायडू ने जाति जनगणना के बजाय कौशल जनगणना के लिए अपनी प्राथमिकता की पुष्टि की। नायडू की योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत को वैश्विक कौशल राजधानी बनाने के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो अपनी विशाल युवा आबादी का लाभ उठाना चाहती है।
पवन कल्याण के साथ सत्ता में आए एक महीने से भी कम समय में, नायडू की NDA सरकार ने इस पहल पर काम करना शुरू कर दिया है। नायडू द्वारा उठाए गए पहले कदमों में से एक कौशल जनगणना पर हस्ताक्षर करना था, जो विपक्ष की जाति जनगणना के आह्वान से अलग था। आंध्र प्रदेश कौशल जनगणना-2024 का उद्देश्य राज्य की आबादी के कौशल और दक्षताओं का आकलन करना है और उसके मुताबिक उनके लिए योजनाएं तैयार करना है। यह व्यापक अभ्यास मौजूदा कार्यबल, जनसांख्यिकीय रुझानों और विभिन्न उद्योगों द्वारा आवश्यक कौशल का विस्तृत अवलोकन प्रदान करेगा। एपी स्टेट स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (APSSDC) द्वारा संचालित, जनगणना में शिक्षा, कार्य अनुभव, प्रशिक्षण और कौशल दक्षता स्तरों पर जानकारी एकत्र करने के लिए सर्वेक्षण शामिल हैं। उन्नत डेटा एनालिटिक्स एकत्रित डेटा की सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करेगा। इस डेटा के आधार पर, कौशल सेट का एक नक्शा विकसित किया जाएगा, अंतराल की पहचान की जाएगी और राज्य में मानव पूंजी को बढ़ाने के लिए लक्षित रणनीतियों को लागू किया जाएगा।
आंध्र प्रदेश कौशल जनगणना के उद्देश्य:-
कौशल प्रोफाइल का आकलन: विभिन्न क्षेत्रों और डोमेन में विविध कौशल सेटों की पहचान करना।
कौशल आवश्यकताओं का आकलन: विनिर्माण, निर्माण और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में विशिष्ट कौशल आवश्यकताओं का निर्धारण करना।
कौशल असमानताओं (अंतरालों) का आकलन: मांग में कौशल और उपलब्ध कौशल के बीच अंतर को उजागर करना, हस्तक्षेप और निवेश के लिए क्षेत्रों की पहचान करना।
नीतिगत निर्णयों को सूचित करना: प्रभावी कौशल प्रशिक्षण, शिक्षा और रोजगार नीतियों को डिजाइन करने के लिए डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि प्रदान करना।
व्यक्तियों को सशक्त बनाना: व्यक्तियों को प्रासंगिक कौशल सेट तक पहुँचने, सूचित कैरियर विकल्प बनाने और रोजगार क्षमता बढ़ाने में सक्षम बनाना।
जाति-आधारित वर्गीकरण से कौशल-आधारित सशक्तिकरण की ओर यह बदलाव एक अभिनव और अग्रणी कदम के रूप में देखा जाता है। कौशल जनगणना के पीछे तर्क आंध्र प्रदेश में उच्च बेरोजगारी दरों को संबोधित करने की आवश्यकता में निहित है। पीरियड लेबर फोर्स सर्वे (2022-23) के अनुसार, राज्य की बेरोजगारी दर 4.1% है, जो राष्ट्रीय औसत 3.2% से अधिक है, जबकि युवा बेरोजगारी दर 15.7% है, जो राष्ट्रीय औसत 10% से अधिक है।
आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने कौशल पहचान और करियर मार्गदर्शन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, "सरकार को युवाओं के कौशल और आकांक्षाओं को समझना चाहिए। हमें इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में जीवित रहने के लिए कई कौशल वाले लोगों की आवश्यकता है। हमें विविध कौशल वाले युवाओं को तैयार करने की आवश्यकता है।"
हालाँकि, विपक्षी दल, जातिगत जनगणना को एक समाधान के रूप में पेश करने की कोशिश करता है, लेकिन आलोचक इसके कई नुकसान भी देखते हैं। आलोचकों का तर्क है कि राजनेता अपने चुनावी हितों को आगे बढ़ाने के लिए जाति जनगणना के आंकड़ों में हेरफेर कर सकते हैं, संभावित रूप से जाति के आधार पर विभाजन को बढ़ा सकते हैं और पहचान-आधारित वोट-बैंक की राजनीति को बढ़ावा दे सकते हैं। साथ ही इसमें अपनी जाति की आबादी बढ़ाने की होड़ मच सकती है, जिससे देश में जनसँख्या विस्फोट को संभालना मुश्किल हो सकता है। जातिगत जनगणना, दो जातियों में टकराव भी पैदा कर सकती है, जिसमे ज्यादा आबादी वालों द्वारा कम आबादी वालों का दमन करना शामिल है।
वहीं, कौशल जनगणना का उद्देश्य अत्यधिक प्रशिक्षित कार्यबल की कमी और पारंपरिक रूप से शिक्षित युवाओं के बड़े वर्ग की गैर-रोजगार क्षमता की दोहरी चुनौतियों का समाधान करना है। इस दृष्टिकोण को जाति जनगणना के लिए विपक्ष के दबाव के विपरीत सकारात्मक कार्रवाई के रूप में देखा जाता है। देखा जाए तो, कौशल जनगणना रोजगार क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करके जाति जनगणना की तुलना में अधिक दूरदर्शी और व्यावहारिक समाधान प्रदान करती है।
जातिगत जनगणना से विपक्ष को क्या फायदा ?
सियासी पंडितों का मानना है कि, कांग्रेस समेत विपक्षी दलों का ये प्लान, भाजपा के हिन्दू वोटों में सेंध मारने का है, क्योंकि SC/ST को हिन्दू समुदाय से अलग करने में पार्टी काफी हद तक सफल रही है। अब उसकी नज़र OBC वोट बैंक पर है, जिनकी तादाद भी अधिक है और यदि उनमे से आधे भी जातिगत जनगणना के मुद्दे पर आकर्षित होकर कांग्रेस की तरफ हो जाते हैं, तो सत्ता का रास्ता आसान है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय तो कांग्रेस का कोर वोट बैंक है ही। ऐसे में जाति जनगणना का मुद्दा कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकता है और भाजपा के हिन्दू वोट बैंक में सेंधमारी करने में पार्टी कामयाब हो सकती है। सियासी जानकारों का कहना है कि, कांग्रेस ये अच्छी तरह से जानती है कि, जब तक हिन्दू समुदाय बड़ी तादाद में भाजपा को वोट दे रहा है, तब तक उसे हराना मुश्किल है, जातिगत जनगणना इसी की काट है। जिससे हिन्दू वोट बैंक को जातियों में विभाजित कर उसे मैनेज करना आसान हो जाएगा। इस लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल इसे भुनाने में कामयाब भी रहे हैं। आरक्षण ख़त्म कर देंगे, संविधान बदल देंगे, जैसे गैर-विश्वासी मुद्दों ने विपक्ष को अच्छा लाभ पहुंचाया है, इसके साथ ही इसमें जातिगत राजनीति भी कारगर रही है।
बता दें कि, कांग्रेस अब तक अल्पसंख्यकों की राजनीति करते आई थी, अल्पसंख्यकों के लिए अलग मंत्रालय, अल्पसंख्यकों के लिए तरह-तरह की योजनाएं, यहाँ तक कि दंगा नियंत्रण कानून (PCTV बिल) जो कांग्रेस लाने में नाकाम रही, उसमे भी अल्पसंख्यकों को दंगों में पूरी छूट थी। उस कानून में प्रावधान ये था कि, दंगा होने पर बहुसंख्यक ही दोषी माने जाएंगे। तत्कालीन सरकार का कहना था कि, चूँकि अल्पसंख्यक तादाद में कम हैं, इसलिए वे हिंसा नहीं कर सकते। हालाँकि, भाजपा के कड़े विरोध के कारण वो बिल पास नहीं हो सका था। अब कांग्रेस की राजनीति जो अल्पसंख्यकों की तरफ से थोड़ी सी बहुसंख्यकों की शिफ्ट होती नज़र आ रही है, तो इसके पीछे कई सियासी मायने और छिपे हुए राजनितिक लाभ हैं। हालाँकि, ऐसा नहीं है कि, कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को पूरी तरह छोड़ ही दिया है, कांग्रेस शासित राज्यों में अब भी अल्पसंख्यकों के लिए काफी योजनाएं चल रहीं हैं, लेकिन अकेले उनके वोटों से सत्ता का रास्ता तय नहीं हो सकता, इसके लिए बहुसंख्यकों के वोटों की भी जरूरत होगी, जिसे SC/ST और OBC के रूप में विभाजित कर अपने पाले में करने की कोशिशें की जा रही हैं।
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