जानिये Tinder जैसे डेटिंग एप्स कैसे डाल सकते है आपके रिश्ते पर असर

जानिये Tinder जैसे डेटिंग एप्स कैसे डाल सकते है आपके रिश्ते पर असर
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मैच... चैट... डेट.  मतलब पहले एक-दूसरे को पंसद करो, फिर बात करो और फिर मुलाकात। इसके साथ ही फोन पर उंगलियां चलाते हुए कुछ ही देर में। गए वो जमाने जब ये सब करने में महीनों-सालों लगते थे. वहीं किसी से बात करने और डेट पर चलने के लिए कहने की हिम्मत जुटानी पड़ती थी। अब तकनीक ने दुनिया को इतना तेज बना दिया है कि किसी खास को ढूंढने में भी पल भर लगता है। वहीं आपके एक उंगली पर हां या ना निर्भर करता है। और ये सब हो रहा है नए ज़मान के 'डेटिंग एप्स' से।देखने में तो ये साधारण से एप होते हैं जो आपके मोबाइल में इंटरनेट की मदद से चल रहे हैं। परन्तु ये जिंदगियों पर खास असर डालते हैं, क्योंकि ये एक इंसान को उसकी पसंद के दूसरे इंसान से जोड़ने का काम करते हैं। जहां लोग एक दूसरे से फ्लर्ट करते हैं, बातचीत करते हैं और प्यार करने लगते हैं और कुछ शादी भी कर लेते हैं। ये एप्स लोकेशन बेस्ड भी होते हैं, मतलब वो आपके आस-पास ही आपके लिए साथी को ढूंढते हैं। 

इसके साथ ही टिंडर भारत में खासा लोकप्रिय डेटिंग एप है। इसके अलावा बंबल, हैप्पन, ट्रूली मैडली, ओके क्यूपिड, ग्राइंडर जैसे तमाम ऐप लोग आजमा रहे हैं। वैसे तो अधिकतर ऐप फ्री में इस्तेमाल किए जा सकते हैं, लेकिन ये पैसे देकर मैच की संभावनाओं को बढ़ाने का दावा भी करते हैं।टिंडर में एक स्वाइपिंग टूल होता है। आपको कोई पसंद आए तो राइट स्वाइप कीजिए या अगर पसंद ना आए तो लेफ्ट स्वाइप कीजिए अगर दोनों एक दूसरे को राइट स्वाइप करते हैं यानी दोनों पक्ष एक दूसरे को पंसद कर लें तो ये हुआ एक "मैच।" टिंडर के अनुसार उनके ज्यादातर यूजर 18 से 30 साल की उम्र के बीच के होते हैं। इसके साथ ही टिंडर की वेबसाइट का दावा है कि दुनियाभर में हर हफ्ते 10 लाख डेट्स इसके जरिए होती हैं। अब तक 30 अरब से ज़्यादा लोग इसके जरिए मैच हुए हैं, यानी उन्होंने एक-दूसरे को पसंद किया है।

26 साल के रवि भी डेटिंग एप पर हैं. उनके अनुसार  वो सिर्फ हुकअप्स के लिए डेटिंग एप्स पर जाते हैं यानी वो कोई सीरियस रिलेशन नहीं देख रहे होते हैं, उन्हें केजुअल सेक्स के लिए पार्टनर चाहिए होता है। उन्होंने कुछ लड़कियों के साथ वन नाइट स्टैंड भी किया है। वहीं शिवानी कहती हैं कि जिन लड़कों से वो डेटिंग एप्स पर मिली उनसे अपनी सेक्शुएलिटी के बारे में खुल कर बात कर पाई. वो कहती हैं कि हो सकता है बाहरी दुनिया में उन्हें इसपर कोई जज करे, परन्तु डेटिंग एप्स पर लोग खुलकर अपनी सेक्शुएल डिजायर्स के बारे में एक-दूसरे से बात कर पाते हैं।रिलेशनशीप एक्सपर्ट निशा खन्ना कहती हैं, "पहले रिश्तों में महिलाएं अधिक कॉम्प्रोमाइज करती थीं। वो ज्यादा एडजस्टमेंट करती थीं लेकिन अब जमाना बदल गया है। इसके साथ ही अब महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर ज्यादा सजग हैं। अब वो काम करने लगी हैं तो उनके पास ज्यादा एक्पोजर है पहले महिलाएं ज्यादा डेटिंग एप इस्तेमाल नहीं करती थी, पुरुष ज्यादा करते थे लेकिन अब महिलाएं भी अपनी सेक्शुअल इच्छाओं के बारे में बात कर रही हैं, अपनी पसंद-नापसंद के बारे में बात कर रही हैं, ऑर्गेज्म के बारे में बात कर रही हैं।इसके साथ ही कुछ महिलाएं शादी ना करके सिंगल रहना चाहती हैं, पहले लव मैरिज का कल्चर भी नहीं था।"

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