नंदी को भगवान भोलेनाथ का वाहन माना जाता है। जी हाँ और नंदी को भगवान शिव का द्वारपाल भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि शिव तक अपनी श्रद्धा पहुंचाने के लिए नंदी को प्रसन्न करना जरूरी है। कहा जाता है नंदी को बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक भी माना गया है और शिव के मंदिर के बाहर हमेशा नंदी विराजित रहते हैं। अब आज हम आपको बताते हैं इसके पीछे का रहस्य।
शिव का सबसे बड़ा भक्त नंदी- कहते हैं कि असुरों और देवताओं के बीच हुए समुद्र मंथन में हलाहल विष को शिव ने पी लिया था। जी दरअसल महादेव ने संसार को बचाने के लिए इस विष का पान कर लिया था। विषपान के समय विष की कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं जिसे नंदी ने अपने जीभ से साफ किया और नंदी के इस समर्पण भाव को देखकर शिव जी प्रसन्न हुए और नंदी को अपने सबसे बड़े भक्त की उपाधि दे दी।
शिव ने नंदी को क्यों चुना अपना वाहन? - कहा जाता है उस दौरान भगवान शिव ने कहा कि मेरी सभी ताकतें नंदी की भी हैं। अगर पार्वती की सुरक्षा मेरे साथ है तो वो नंदी के साथ भी है। बैल को भोला माना जाता है और काम बहुत करता है। वैसे ही शिवशंकर भी भोले, कर्मठ और काफी जटिल माने जाते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि इसीलिए शिव ने नंदी बैल को ही अपने वाहन के रूप में चुना। जी दरअसल नंदी की भक्ति की ही शक्ति है कि भोले भंडारी ना केवल उन पर सवार होकर तीनों लोकों की यात्रा करते हैं बल्कि बिना उनके वो कहीं भी नहीं जाते हैं।
नंदी की महिमा- कहते हैं जो भी भगवान भोले से मिलना चाहता है नंदी पहले उसकी भक्ति की परीक्षा लेते हैं और उसके बाद ही शिव कृपा के मार्ग खुलते हैं। जी हाँ और इसी के चलते भोलेनाथ के दर्शन करने से पहले नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहने की परंपरा है।
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