नई दिल्ली: बांग्लादेश में हाल के दिनों में हो रही हिंसा का सबसे अधिक शिकार वहां के अल्पसंख्यक हिंदू हो रहे हैं। हिंदुओं के मंदिरों को जलाया जा रहा है, उनके घरों को लूटा जा रहा है, और कई लोगों की जान भी ली जा रही है। ऐसे में एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की कुल कितनी तादाद है और 1971 के बाद से कितने हिंदू वहां से पलायन कर चुके हैं।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बांग्लादेश की कुल आबादी 17 करोड़ के करीब है, जिसमें से हिंदुओं की आबादी लगभग 1.35 करोड़ है, यानी लगभग 7.97 प्रतिशत। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में हिंदुओं की जनसंख्या 10 प्रतिशत से अधिक है, और लगभग चार जिलों में यह संख्या 20 प्रतिशत के करीब बताई जाती है। हॉवर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1971 में बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के समय वहां 20 प्रतिशत हिंदू थे, जो अब आधे से भी कम रह गए हैं। हॉवर्ड की वेबसाइट के अनुसार, 1971 जब बांग्लादेश अस्तित्व में आया था, उस समय वहां 20 फीसद हिन्दू रहा करते थे, जो बीते 50 सालों में आधे से भी कम हो गए। ये हिन्दू कहाँ गए ? मार डाले गए ? इस्लाम में धर्मान्तरित कर दिए गए ? पलायन कर गए ? या उनका क्या हुआ ? ये तमाम सवाल हैं, जो पड़ोसी इस्लामी देश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं की आबादी और गैर-मुस्लिमों के प्रति कट्टरपंथियों की नफरत को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं। बड़ा सवाल ये भी है कि, आखिर क्यों किसी मुस्लिम बहुल देश में दूसरे समुदाय नहीं पनप पाते, चाहे वो ईसाई हों, सिख हों, बौद्ध हों या कोई और। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, ये कुछ ऐसे मुल्क हैं, जहाँ कट्टरपंथ हावी हो चुका है और यहाँ दूसरे समुदायों की क्या स्थिति है, ये किसी से छिपा नहीं है।
पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति और भी खराब हुई है। जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों ने हिंदुओं पर अत्याचार किए हैं, और उन्हें धार्मिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया गया है, जिससे कई लोग पलायन को मजबूर हुए हैं। कुछ रिपोर्टों में यह दावा भी किया गया है कि अगले तीन दशकों में बांग्लादेश में हिंदुओं का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश ने खुद को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया था, लेकिन 1988 में उसने संविधान में बदलाव कर खुद को इस्लामी राष्ट्र घोषित कर दिया।
इसके अलावा, बांग्लादेश में एक भूमि कानून, Vested Property Act, लागू था, जिसके तहत सरकार दुश्मन संपत्ति को अपने कब्जे में ले सकती थी। इस कानून का सबसे अधिक प्रभाव हिंदुओं पर पड़ा, और इससे लगभग हर हिंदू परिवार प्रभावित हुआ। हालांकि, इस कानून में संशोधन किया गया है, लेकिन फिर भी हिंदुओं का पलायन जारी है।
भारत में बांग्लादेशी शरणार्थियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाखों लोग भारत में शरण लेने आए थे। 2004 में यूपीए सरकार ने बताया था कि भारत में करीब 12 लाख अवैध बांग्लादेशी प्रवासी रह रहे हैं, जबकि 2016 में यह संख्या 20 लाख बताई गई। 2018 में गृह मंत्री अमित शाह ने इसे 40 लाख के करीब बताया था। वास्तव में, यह संख्या करोड़ों में हो सकती है, क्योंकि कई बांग्लादेशी अवैध रूप से भारत में घुसपैठ कर रहे हैं और यहां के मुस्लिम समुदाय के साथ घुलमिल जाते हैं। कुछ राजनीतिक दल भी वोट बैंक के लालच में उनके कागजात बनवाकर उन्हें भारतीय नागरिक साबित कर देते हैं। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, समाजवादी पार्टी (सपा) नेता इरफ़ान सोलंकी इस मामले में जांच का भी सामना कर रहे हैं, जिनपर अवैध बांग्लादेशियों के कागज़ सत्यापित करने का आरोप है।
और फिर अवैध घुसपैठियों को निकालने के लिए जब केंद्र सरकार कार्रवाई की बात करती है, तो सबसे पहले विपक्षी दल विरोध में खड़े हो जाते हैं। बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तो NRC के विरोध में खुलकर कह चुकी हैं कि, वे बांग्लादेशियों और रोहिंग्यों को किसी कीमत पर बाहर नहीं निकालने देंगी। यही स्टैंड अधिकतर विपक्षी दलों का है, साथ ही वे CAA का भी विरोध करते हैं, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना सहकर आने वाले पीड़ितों को भारत में नागरिकता देने का प्रावधान करता है। यानी घुसपैठियों को निकलने नहीं देंगे और शरणार्थियों को आने नहीं देंगे। कई नेता तो ये मानते ही नहीं, कि तीनों पड़ोसी मुल्कों में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता है, तो उन्हें राहत देने की बात कैसे करें ? उनसे ये सवाल पुछा जाना चाहिए कि, अगर कुछ नहीं हुआ तो फिर हिंदू समुदाय, जिसमे अधिकतर दलित पिछड़े शामिल हैं, उनकी आबादी 20 फीसद से 8 फीसद कैसे हो गई ? जबकि भारत में तो ऐसा नहीं हुआ। आज फिर बांग्लादेश हिंसा की आग में जल रहा है, और हजारों लोग भारत की सीमा पर खड़े हैं। लेकिन उन्हें भारत में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा रही है।
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