आर्थिक मोर्चे पर चीन को चोट देना आवश्यक, भारत से व्यापार कर सीमा पर कर रहा खूनी संघर्ष

आर्थिक मोर्चे पर चीन को चोट देना आवश्यक, भारत से व्यापार कर सीमा पर कर रहा खूनी संघर्ष
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बीते सोमवार गलवन में हुई हिंसक घटना के बाद देश में न सिर्फ चीन बल्कि उसके उत्‍पादों को लेकर भी लोगों में गुस्‍सा साफतौर पर दिखाई दे रहा है. व्‍यापारियों की तरफ से भी कुछ चीन के उत्‍पादों की सूची जारी की है जिनको उन्‍होंने बहिष्‍कृत कर दिया है. वहीं आम जन भी चीन के उत्‍पादों का इस्‍तेमाल न करने की बात कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी चीन के खिलाफ गुस्‍सा दिखाई दे रहा है और लोग चीनी उत्‍पादन का बहिष्‍कार करने के लिए लगातार कमेंट्स कर रहे हैं. इन सभी का मकसद चीन से बदला लेने का है. लेकिन लोगों के इस गुस्‍से के बावजूद चीन को आर्थिक मोर्चे पर पटखनी देना कहा तक संभव है? ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब तलाशना बेहद जरूरी है. इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए दैनिक जागरण ने जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय स्थित सेंटर फॉर ईस्‍ट एशियन स्‍टडीज और स्‍कूल ऑफ इंटरनेशनल स्‍टडीज की प्रोफेसर आचार्य से बात की.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि आचार्य की राय में चीन के साथ गलवन को लेकर उपजे विवाद के मद्देनजर चीन को आर्थिक मोर्चे पर पटखनी देना जरूरी है. जिसकी वजह से सरकार की तरफ से जन भावना के अनुरूप कुछ कदम जरूर उठाए गए हैं. लेकिन, चीन के ऊपर इस मोर्चे पर लगाम लगाना इतना आसान नहीं है, क्‍योंकि वर्तमान में भारत के अंदर हमारी अपनी जरूरतों के छोटे से उत्‍पाद से लेकर बड़े उत्‍पाद भी चीन से आ रहे हैं. ऐसे में चीन पर लगाम लगाने से पहले भारत को पूरी रणनीति बनानी होगी और फिर उस पर काम करना होगा. आचार्य का मानना है कि चीन को पटखनी देने के लिए जरूरी होगा कि सीमा पर सेना और आर्थिक मोर्चे पर सरकार एक साथ काम करे.

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उनके मुताबिक वर्तमान में दोनों देशों के बीच व्‍यापार 100 बिलियन डॉलर से अधिक का है. हालांकि भारत की तरफ से चीन को बेचे जाने वाले सामान के मुकाबले भारत द्वारा चीन से खरीदे जाना वाला उत्‍पाद काफी है. इस वजह से भारत का चीन से व्‍यापारिक घाटा काफी बड़ा है. वहीं चीन से भारत में आने वाले निवेश की बात करें तो ये करीब 5-6 बिलियन डॉलर का है जिसको शी चिनफिंग 20 बिलियन डॉलर तक करना चाहते हैं.

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