मुस्लिम धर्म के लोग प्रति वर्ष बकरीद या बकरा ईद का त्यौहार बड़ी धूम-धाम के साथ मनाते हैं। यह त्यौहार मुस्लिमों के प्रमुख त्यौहारों में से एक होता है। बकरीद के दिन लोग अपने घर में पल रहे बकरे की कुर्बानी देते हैं। आइए जानते हैं बकरीद की कहानी या इसके इतिहास और इस त्यौहार को कैसे मनाया जाता है इसके बारे में।
बकरीद की कहानी या इसका इतिहास
बकरीद मनाए जाने के पीछे एक मान्यता है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत मोहम्मद की परीक्षा ली थी। अल्लाह ने कहा कि वे तब ही खुश होंगे जब हजरत द्वारा उनके सबसे अजीज को कुर्बान किया जाएगा। यह सुनकर हजरत अपने सबसे अजीज यानी कि अपने बेटे इस्माइल को कुर्बानी के लिए ले आए। इस्माइल की कुर्बानी का वक्त अब बहुत करीब था। आंखों पर पट्टी बांधकर हजरत ने इस्माइल की कुर्बानी दे दी। हालांकि अगले ही पल उन्होंने यह दृश्य देखा कि अल्लाह ने इस्माइल की नहीं बल्कि उनके बकरे की बलि को क़ुबूल कर लिया। अल्लाह ने इस्माइल के स्थान पर बकरे को रख दिया था। इस तरह हज़रत इस परीक्षा में पास हो गए। तब से ही बकरीद के त्यौहार की शुरुआत हो गई थी।
किस तरह मनाते हैं बकरीद ?
- इस दिन सर्वप्रथम ईद गाह में ईद सलत पेश की जाती है।
-बकरीद के दिन नमाज भी अदा की जाती है।
- सभी लोग एक दूसरे को ईद की शुभकामनाएं देते हैं।
- बकरे के अलावा किसी और जीव की कुर्बानी नहीं दी जाती है। हालांकि कई लोग बकरे के साथ ही गाय, बकरी, भैंस और ऊंट को भी इस दिन कुर्बान करते हैं।
- बकरे को कुर्बान करने के बाद उसे कई हिस्सों में बांटा जाता है। जहां उसके मांस का एक तिहाई अंश अल्लाह को, एक तिहाई घर के सदस्यों एवम दोस्तों को और एक तिहाई हिस्सा गरीबों को बांट दिया जाता है।
बकरा ईद : एक बलि के कारण हर साल दी जाती है लाखों बेजुबानों की कुर्बानी