लखनऊ: भारतीय सेना सरहदों पर दुश्मनों से निपटने के लिए दिन-रात अपनी जान की बाजी लगाए खड़ी है। लेकिन एक गंभीर सवाल यह है कि उन मजहबी कट्टरपंथियों से देश कैसे निपटे, जो भारत के अंदर रहकर इसे कमजोर करने की साजिश रच रहे हैं? इन साजिशों को राजनीतिक वोट बैंक का संरक्षण प्राप्त होने से स्थिति और गंभीर हो जाती है।
हाल ही में झांसी और कानपुर में ट्रेन डीरेलिंग की कोशिशों के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और उत्तर प्रदेश एटीएस ने जांच की। इस जांच में ऐसे सबूत मिले हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि कुछ मदरसे न केवल छात्रों को कट्टरपंथी बना रहे हैं, बल्कि उन्हें ट्रेन को पटरी से उतारने की बाकायदा ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, जांच एजेंसियों ने कई वीडियो और ऑनलाइन कंटेंट बरामद किए हैं, जिनमें छात्रों को भड़काने के साथ-साथ ट्रेन डीरेलिंग का तरीका भी सिखाया जा रहा है। इन वीडियोज में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा युवाओं को उकसाने की स्पष्ट झलक मिलती है।
झांसी मामले में एक मदरसा शिक्षक, मुफ्ती खालिद नदवी, की भूमिका संदिग्ध पाई गई। गुरुवार को एनआईए और एटीएस ने नदवी के घर छापा मारा, उसके लैपटॉप, मोबाइल और अन्य डिजिटल डिवाइस जब्त कर लिए गए। पूछताछ के लिए जब नदवी को हिरासत में लिया गया, तो मस्जिद से ऐलान के बाद मुस्लिम समुदाय की एक भीड़, जिसमें महिलाएँ भी शामिल थीं, उसे छुड़ाने के लिए इकट्ठा हो गई।
इस विरोध प्रदर्शन ने स्थिति को तनावपूर्ण बना दिया, लेकिन पुलिस बल ने हालात संभाल लिए। इसके बाद 100 लोगों पर मामला दर्ज किया गया, जिन्होंने पुलिस कार्यवाही में बाधा डालने की कोशिश की। उल्लेखनीय है कि, बीते तीन महीनों में देशभर में ट्रेन को पटरी से उतारने की कई घटनाएँ सामने आई हैं। कभी साबरमती एक्सप्रेस को निशाना बनाया गया, तो कभी कालिंदी एक्सप्रेस पर हमला हुआ। वंदे भारत जैसी महत्वपूर्ण ट्रेनों पर पत्थर फेंके गए। कुछ मामलों में पटरी पर गैस सिलेंडर और लोहे की रॉड रखी गईं। समय रहते इन साजिशों को नाकाम कर बड़ी दुर्घटनाओं को टाल दिया गया, लेकिन इन घटनाओं ने सुरक्षा तंत्र के सामने गंभीर चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं।
यह सवाल हर देशभक्त भारतीय के मन में उठता है कि जब देश के अंदर ही रहने वाले लोग, जो भारत के संसाधनों और स्वतंत्रता का लाभ उठाते हैं, राष्ट्र के खिलाफ साजिश रच रहे हैं, तो उनसे कैसे निपटा जाए? राजनीतिक लाभ के लिए इन कट्टरपंथियों को दिया जाने वाला समर्थन स्थिति को और कठिन बना देता है। NIA और ATS की जांच में जो प्रमाण सामने आए हैं, उनसे यह साफ हो गया है कि ट्रेन डीरेलिंग की साजिशें केवल एक आपराधिक कृत्य नहीं, बल्कि एक सुनियोजित देशविरोधी कदम है। मदरसों में छात्रों को इस तरह की ट्रेनिंग देना क्या भारत की सुरक्षा के खिलाफ खुला युद्ध नहीं है?
यदि इन साजिशों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाते हैं, तो 'मुस्लिमों पर अत्याचार' का प्रोपेगेंडा शुरू हो जाता है। यह स्थिति देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती है। ऐसे हालात में सवाल उठता है कि इन कट्टरपंथियों की देशभक्ति पर कैसे विश्वास किया जाए? क्या यह जरूरी नहीं हो गया है कि ऐसे तत्वों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की जाए?
भारत के लिए यह समय है कि वह इन आंतरिक दुश्मनों से निपटने के लिए एक ठोस रणनीति बनाए। क्योंकि अगर इन साजिशों को समय रहते रोका नहीं गया, तो यह देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा साबित हो सकती हैं।