अगर आपको अपने घर कोई सामान मंगवाना हो या फिर अपने इलाके के बारे में बताना हो, तो पिनकोड आपकी मदद करता है। पिनकोड से आपके घर का पता सही तरीके से पहचाना जाता है, जिससे डिलीवरी आसानी से हो जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पिनकोड की शुरुआत कब और क्यों हुई? आइए जानते हैं इसके बारे में।
पिनकोड क्या होता है?
पिनकोड का मतलब है "पोस्टल इंडेक्स नंबर"। यह एक 6 अंकों का कोड होता है, जिसका इस्तेमाल भारत की डाक प्रणाली में होता है। यह कोड हर डाकघर को एक विशेष पहचान देता है। इसकी मदद से चिट्ठी या कोई भी सामान सही जगह पर जल्दी और आसानी से पहुंच जाता है।
पिनकोड की शुरुआत कैसे हुई?
भारत में पिनकोड सिस्टम की शुरुआत 15 अगस्त 1972 को हुई थी। उस समय डाक वितरण में काफी दिक्कतें आती थीं, क्योंकि सही पते तक चिट्ठी पहुंचने में समय लगता था। इस परेशानी से निपटने के लिए पिनकोड सिस्टम लाया गया, जिससे डाक का सही स्थान तक पहुंचना आसान हो गया।
पिनकोड सिस्टम के फायदे क्या हैं?
पिनकोड सिस्टम के कई फायदे हैं:
डाक को सही जगह तक पहुंचाने में बहुत कम समय लगता है।
डाक वितरण प्रणाली अधिक कुशल हो जाती है।
गलत जगह पर डाक जाने की संभावना काफी कम हो जाती है।
पिनकोड के जरिए डाक पहुंचाना सरल और तेज हो गया है।
पिनकोड कैसे काम करता है?
पिनकोड एक 6 अंकों का कोड होता है। इसमें:
पहले दो अंक उस डाक क्षेत्र को दर्शाते हैं, जिसमें आपका इलाका आता है।
अगले दो अंक उस सर्कल को दिखाते हैं, जो उस क्षेत्र के डाकघरों को कवर करता है।
आखिरी दो अंक खास डाकघर की पहचान बताते हैं।
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