नई दिल्ली: दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति और दिग्गज कांग्रेसी नेता प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने खुलासा किया है कि उनके पिता का मानना था कि उनके स्वतंत्र और गैर-विनम्र दृष्टिकोण के कारण उन्हें राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था। सोमवार को अपनी पुस्तक "प्रणब माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स" के लॉन्च पर कांग्रेस नेत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि उनके पिता कहा करते थे कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ उनका कार्यकाल उनके राजनीतिक जीवन का "स्वर्णिम काल" था।
बता दें कि, इस पुस्तक में प्रणब मुखर्जी की डायरियों से लिए गए संदर्भ शामिल हैं, जो उनकी जयंती के अवसर पर लॉन्च की गई थी। इस कार्यक्रम में कांग्रेस नेता पी चिदंबरम और भाजपा नेता विजय गोयल भी मौजूद रहे थे। शर्मिष्ठा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बारे में प्रणब मुखर्जी के आकलन पर भी बात की है, जो उस किताब का हिस्सा है और जिसके कुछ अंशों पर विवाद खड़ा हो गया है। शर्मिष्ठा ने कहा कि उनके पिता भी प्रस्तावित अध्यादेश के विरोध में थे, जिसकी एक प्रति राहुल गांधी ने सितंबर 2013 में एक संवाददाता सम्मेलन में फाड़ दी थी, लेकिन उन्हें लगा कि इस पर संसद में चर्चा की जानी चाहिए। अध्यादेश का उद्देश्य दोषी विधायकों को तत्काल अयोग्य ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार करना था, और इसके बजाय यह प्रस्तावित किया गया कि वे उच्च न्यायालय में अपील लंबित होने तक सदस्य के रूप में बने रह सकते हैं।
#WATCH | Gurugram: On being asked if his father wanted to be the Prime Minister, Author and Daughter of former President Pranab Mukherjee, Sharmistha Mukherjee says, "Yes, he wanted to become the PM, but he knew that he couldn't become one, so he was not in some disillusionment… pic.twitter.com/5PSu0e4UTp
— ANI (@ANI) December 6, 2023
शर्मिष्ठा ने कहा कि, "मैं ही उन्हें (अध्यादेश फाड़ने की) खबर सुनाने वाली थी। वह बहुत गुस्से में थे।" उन्होंने यह भी कहा कि देश के राष्ट्रपति के रूप में उनके पिता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक टीम के रूप में काम किया। पूर्व नौकरशाह पवन के वर्मा के साथ पुस्तक पर बातचीत के दौरान, उन्होंने अपने पिता के RSS कार्यक्रम में भाग लेने के विरोध को भी याद किया। उन्होंने बताया कि, "मैंने बाबा से उनके फैसले पर तीन-चार दिनों तक लड़ाई की। एक दिन उन्होंने कहा कि यह मैं नहीं बल्कि देश है, जो वैधता दे रहा है। बाबा को लगा कि लोकतंत्र पूरी तरह से बातचीत के बारे में है। यह विपक्ष के साथ बातचीत के बारे में है।" चर्चा की शुरुआत में शर्मिष्ठा ने यह भी कहा था कि किताब में राहुल गांधी का जिक्र बहुत कम है। शर्मिष्ठा बताती हैं कि, ''उनके पिता ने उनसे पहले ही कह दिया था कि, सोनिया गांधी उन्हें पीएम नहीं बनाएंगी, वो मनमोहन सिंह होंगे।''
शर्मिष्ठा ने कहा कि उनके पिता अक्सर कहते थे कि कांग्रेस ने संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की और "इसे बनाए रखने का काम पार्टी का है"। पुस्तक की आलोचना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी वरिष्ठ नेता ने इस पुस्तक पर बात नहीं की है, केवल पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा है कि वह इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते, क्योंकि उन्होंने इसे नहीं पढ़ा है। शर्मिष्ठा ने कहा कि कांग्रेस नेताओं में केवल चिदंबरम ही पहुंचे, इससे उन्हें दुख हुआ है। शर्मिष्ठा ने कहा कि, "पुस्तक के एक निश्चित अंश पर यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि उन्हें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या वे वास्तव में मूल्यों को कायम रख रहे हैं, जो वे उपदेश दे रहे हैं उसका वास्तव में अभ्यास कर रहे हैं।"
राजनीति छोड़ने वाली शर्मिष्ठा ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने किसी के बारे में अपने पिता के विचारों को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश नहीं की है। इंदिरा गांधी के साथ अपने संबंधों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि, "मेरे पिता कहा करते थे कि इंदिरा गांधी का काल उनके राजनीतिक जीवन का स्वर्णिम काल था। इंदिराजी बाबा पर नजर रखती थीं। अगर कोई एक व्यक्ति था, जिसके साथ मेरे पिता की वफादारी थी, तो वह था इंदिरा गांधी थीं और कोई नहीं।" यह याद करते हुए कि वह इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में कैसे आगे बढ़े, उन्होंने कहा कि यह एक दिन में नहीं हुआ और रेखांकित किया कि पूर्व प्रधान मंत्री उनके पिता के होमवर्क से प्रभावित थे।
इंदिरा जी के प्रति वफादार थे प्रणब दा :-
शर्मिष्ठा ने आगे कहा कि, "असली जुड़ाव आपातकाल के बाद शुरू हुआ। वह हर सुख-दुख में उनके साथ खड़े रहे। उस दौरान कई दिग्गजों ने उन्हें छोड़ दिया था।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनके पिता इंदिरा जी के प्रति वफादार रहे। इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि आपातकाल लगाने का एक ऐतिहासिक संदर्भ था, उन्होंने कहा कि उन परिस्थितियों पर भी गौर किया जाना चाहिए, जिनके कारण यह हुआ क्योंकि उस समय देश अराजकता की स्थिति में था। शर्मिष्ठा ने उस समय के परिदृश्य के बारे में अपने पिता के आकलन को याद करते हुए कहा कि, "उन्होंने (इंदिरा ने) गलती की और उन्हें इसका एहसास हुआ। अगर मुझमें राजनीतिक परिपक्वता होती, तो जेपी और इंदिरा गांधी के बीच एक राजनीतिक बैठक आयोजित की जा सकती थी।"
पूर्व नौकरशाह वर्मा ने तब उनसे उनके पिता और राजीव गांधी के बीच "विश्वास की कमी" के बारे में पूछा, जो उनकी हत्या के बाद उनकी मां के उत्तराधिकारी बने थे। शर्मिष्ठा ने कहा कि कुछ लोगों ने ऐसी 'कहानियां गढ़ीं' कि उनके पिता राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के पक्ष में नहीं थे। शर्मिष्ठा ने बताया कि, "बाबा के नोट्स के अनुसार, यह वास्तव में एक मनगढ़ंत कहानी थी, राजीव गांधी और बाबा के बीच गलतफहमी पैदा करने के लिए। विश्वास की कमी का मुख्य कारण बाबा का कट्टर व्यक्तित्व और उनका गैर-आज्ञाकारी रवैया था। बाबा ने कहा था कि राजीव ने मुझे न लेकर सही किया था, मैं उनके मंत्रिमंडल में हूं क्योंकि मैं एक सख्त पागल हूं।'' इसके बाद वर्मा ने मुखर्जी को जनवरी 1986 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) से हटाए जाने और उसी साल कुछ महीने बाद कांग्रेस से उनके निष्कासन का मुद्दा उठाया।
नरसिम्हा राव और प्रणब मुखर्जी :-
शर्मिष्ठा ने याद किया कि उनके पिता उदास थे और उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन भी किया था, लेकिन बाद में कांग्रेस में लौट आए। इसके बाद उन्होंने बताया कि कैसे उनके पिता पीवी नरसिम्हा राव कैबिनेट में शामिल नहीं किए जाने से नाराज हो गए थे, क्योंकि वह नरसिम्हा राव को अपना दोस्त मानते थे, लेकिन उन्हें योजना आयोग के अध्यक्ष पद की पेशकश की गई थी। शर्मिष्ठा ने अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच कामकाजी संबंधों के बारे में भी चर्चा की।
मनमोहन सिंह के साथ कैसे थे प्रणब मुखर्जी के रिश्ते:-
उन्होंने बताया कि, "डॉ. मनमोहन सिंह ने अनुकरणीय शिष्टाचार दिखाया और उन दोनों के बीच गहरा पारस्परिक सम्मान था। वे जानते थे कि मतभेदों को कैसे संभालना है।" कांग्रेस शासन के दौरान मुखर्जी के पास प्रमुख विभाग थे। उनके पास रक्षा, विदेश मामले और वित्त का प्रभार था। वर्मा ने शर्मिष्ठा से पूछा कि क्या मुखर्जी राष्ट्रपति पद के लिए पहली पसंद हैं. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि वह पहली पसंद थे, दूसरी पसंद थे या तीसरी पसंद थे। लेकिन बाबा की डायरी से मुझे पता चला कि श्रीमती गांधी श्री हामिद अंसारी जी की संभावना और जीतने की संभावना तलाश रही थीं।"
राहुल गांधी के बारे में क्या सोचते थे प्रणब मुखर्जी:-
2013 में राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लाया गया एक अध्यादेश भरी प्रेस वार्ता में फाड़ दिया था, जिसको लेकर प्रणब नाराज़ थे। दिवंगत राष्ट्रपति की बेटी बताती हैं कि, "कोई भी इस बात से सहमत होगा कि राहुल गांधी द्वारा अध्यादेश को खारिज करना बेहद अहंकारी और राजनीतिक रूप से अपरिपक्वता थी। मुख्य रूप से मेरे पिता भी अध्यादेश के खिलाफ थे, लेकिन उन्होंने कहा कि 'राहुल गांधी ऐसा करने वाले कौन होते हैं? वह कैबिनेट का हिस्सा भी नहीं थे।' शर्मिष्ठा बताती हैं कि, उस समय उनके पिता ने कहा था कि, ''राहुल गांधी में गांधी-नेहरू परिवार का पूरा अहंकार है, लेकिन राजनितिक परिपक्वता के बगैर।''
लेखिका भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी-एक दिन सुबह राहुल गांधी पिता जी से मिलने आए।
— Yogi (@Yogi4Bharat_) December 6, 2023
आना था शाम को,तो मैंने अपने पिता से जिक्र किया तो उनका व्यंग्य- यदि राहुल AM व PM में अंतर नहीं करता,तो एक दिन PMO चलाने की उम्मीद कैसे करे।pic.twitter.com/p68Ku4AFoS
शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि उन्हें एक घटना याद आती है जहां उनके पिता ने राहुल गांधी पर उनकी प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षाओं को लेकर व्यंग्यात्मक कटाक्ष किया था। उन्होंने बताया कि, "एक सुबह जब बाबा (प्रणब) मुगल गार्डन में टहल रहे थे, तो राहुल गांधी उनसे मिलने आए। उन्हें (प्रणब मुखर्जी को) टहलने या पूजा करते समय परेशान करना पसंद नहीं था। लेकिन फिर भी, वह उनसे मिले। बाद में, मुझे पता चला कि राहुल गांधी उनसे शाम को मिलने वाले थे, यानी मीटिंग शाम को तय की गई थी।" उन्होंने आगे कहा कि, "जब मैंने बाबा को इस बारे में बताया, तो उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि ''अगर राहुल गांधी का कार्यालय AM और PM के बीच अंतर नहीं कर सकता, तो वह प्रधानमंत्री कैसे बन सकते हैं?" उन्होंने कहा कि, एक बार उनके पिता ने कहा था कि, "राहुल गांधी सवालों से भरे हुए हैं और अभी भी राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं हुए हैं।''
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