नई दिल्लीः केंद्र सरकार प्रस्तावित नई शिक्षा नीति पर राज्यों से कोई टकराव मोल लेना नहीं चाहती है। इसी सिलसिले में मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री के साथ इसको लेकर लंबी बातचीत की है। तमिलनाडु के साथ यह चर्चा इसलिए भी अहम है, क्योंकि नई शिक्षा नीति के सामने आने के बाद त्रिभाषा फार्मूले के तहत हिंदी की अनिवार्यता को लेकर विरोध के सबसे पहले सुर तमिलनाडु से ही उठे थे। इस विवाद के तूल पकड़ने के बाद हिन्दी की अनिवार्यता से जुड़े सुझाव को सरकार ने हटा दिया था।
साथ ही साफ किया था, कि किसी पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। इस बीच नीति को लेकर आए डेढ़ लाख से ज्यादा सुझावों को लेकर भी काम शुरू कर दिया है। मंत्रालय ने यह कवायद नीति पर मांगे गए सुझावों की समय- सीमा खत्म होने के बाद शुरू किया है। फिलहाल नीति को लेकर मांगे गए सुझावों की अंतिम समय- सीमा 15 अगस्त तक की थी। इससे पहले इसे दो बार विस्तार भी दिया गया था। नई शिक्षा नीति के सुझावों पर काम रहे अधिकारियों के अनुसार सभी सुझावों को जल्द ही अंतिम रूप दिया जाएगा।
इसके बाद नीति के अंतिम स्वरूप पर राज्यों के साथ एक दौर की फिर से चर्चा होगी। हालांकि एक वर्ग अभी भी नीति को लेकर लिए जाने वाले सुझावों की समयसीमा को बढ़ाने की मांग कर रहा है। मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के अनुसार तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री के ए सेंगोट्टैयन ने सोमवार को शास्त्री भवन पहुंचकर मानव संसाधन विकास मंत्री निशंक से मुलाकात की। साथ ही नई शिक्षा नीति में शामिल कई अहम बिंदुओं को लेकर लंबी चर्चा की है। बता दें कि दक्षिणी राज्य तमिलनाडु हिन्दी भाषा को लेकर काफी आक्रमक है। वहां हिन्दी विरोधी आंदोलन भी हो चुके हैं।
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