भोपाल: मध्य प्रदेश से एक चौंकाने वाली घटना सामने आ रही है यहाँ सतपुड़ा बाघ अभयारण्य के कोर क्षेत्र में एक वयस्क बाघ को शिकारियों ने मार दिया तथा उसका सिर ले गए। शुक्रवार को यह खबर एक अफसर ने दी। सतपुड़ा बाघ अभयारण्य के क्षेत्र संचालक एल कृष्णमूर्ति ने पीटीआई-भाषा को बताया कि सोमवार को सतपुड़ा बाघ अभयारण्य के कोर क्षेत्र में एक जलाशय के समीप एक सिर रहित बाघ का सड़ा-गला शव मिला।
अफसर ने कहा, 'निश्चित तौर पर यह अवैध शिकार का मामला है। हमने इस बाघ के सिर की तलाश की, मगर वह नहीं मिला। परिस्थितिजन्य साक्ष्य बताते हैं कि इसे जहर नहीं दिया गया था। तालाब में जहां बाघ पाया गया था, हमने उस स्थान के पानी के सैंपल को जांच के लिए भेजा है।' उन्होंने कहा कि बाघ के शरीर के अंगों को फॉरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया है तथा इस घटना की सभी कोणों से तहकीकात की जा रही है। वहीं, मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) जेएस चौहान से जब कथित अंतरराष्ट्रीय शिकारी जय तमांग की संलिप्तता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह संसार चंद (एक कुख्यात शिकारी जिस पर सरिस्का में बाघों का सफाया करने का आरोप है) के पश्चात् बाघ के शरीर के अंगों का सबसे बड़ा तस्कर है। उन्होंने कहा, 'हमने तिब्बत के रहने वाले तमांग को इससे पहले (2015 में) पूर्वोत्तर प्रदेश से गिरफ्तार किया था। हमें तमांग के ठिकाने के बारे में खबर नहीं है क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करता रहता है।'
अन्य अफसरों ने बताया, 2016 में इंटरपोल की अंतरराष्ट्रीय अपराध पुलिस की पर्यावरण अपराध शाखा ने तमांग के खिलाफ 'रेड कॉर्नर' नोटिस जारी किया था, जबकि 2018 में मध्य प्रदेश वन विभाग ने सतपुड़ा बाघ अभयारण्य में रेडियो कॉलर वाले बाघ तथा मध्य प्रदेश में सैकड़ों पैंगोलिन के शिकार के सिलसिले में वांछित तमांग को पकड़ने के लिए नेपाल से सहायता मांगी थी। चौहान ने कहा कि उन्हें बाघ का शिकार करने के पीछे किसी बड़े गैंग का संदेह नहीं है। उन्होंने कहा, 'यदि शिकार के पीछे पेशेवर शिकारी होते तो वे बाघ के शरीर के सभी अंगों को (बिक्री के लिए) ले जाते। सिर्फ सिर ही क्यों ले जाते। ऐसा लगता है कि इस मामले का कोई स्थानीय संबंध है। मुझे अभी इसके पीछे कोई संगठित गिरोह नजर नहीं आता।' चौहान ने कहा कि कुछ लोगों का कहना है कि बाघ के अंगों का इस्तेमाल जादू-टोना में करने से समृद्धता आती है। वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में एक बाघ की निगरानी एवं संरक्षण में सालाना तकरीबन 5 लाख रुपये खर्च होते हैं।
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