नई दिल्ली: कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वायनाड के पूर्व सांसद राहुल गांधी ने बुधवार (2 अगस्त) को संसद से अयोग्यता के खिलाफ अपनी अपील के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक जवाबी हलफनामा दायर किया. हलफनामे में, उन्होंने दोहराया कि वह अपनी मोदी उपनाम वाली टिप्पणी के लिए माफी नहीं मांगेंगे, जिसके कारण निचली अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया और बाद में लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगनी ही होती, तो वह पहले ही ऐसा कर चुके होते.
प्रत्युत्तर हलफनामे में, राहुल गांधी के वकील ने बताया कि, 'याचिकाकर्ता (राहुल गांधी) ने कहा है और हमेशा कहा है कि वह अपराध के लिए दोषी नहीं है, और अगर उसे माफ़ी मांगनी होती और अपराध को कम करना होता, तो वह बहुत पहले ही ऐसा कर चुका होता.' 63 पेज के हलफनामे में गांधी ने दावा किया कि उन्होंने कोई गंभीर अपराध नहीं किया है और उनके खिलाफ कोई मानहानि का मामला नहीं बनाया गया है. उन्होंने तर्क दिया है कि आपराधिक मानहानि नैतिक अधमता से जुड़ा कोई गंभीर अपराध नहीं है. हलफनामे में आगे कहा गया है कि मानहानि IPC के तहत 22 अपराधों में से केवल एक है, जिसमें केवल साधारण कारावास का प्रावधान है, कठोर कारावास का नहीं.
राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि मानहानि मामले में उनके दो साल के निलंबन पर रोक लगाई जाए, ताकि वह मौजूदा संसद सत्र और भविष्य में होने वाले सत्रों में भाग ले सकें. राहुल गांधी के वकील ने यह जवाबी हलफनामा मामले में शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी द्वारा दायर जवाबी हलफनामे के जवाब में दायर किया है, जिन्होंने कांग्रेस नेता के खिलाफ निचली अदालतों द्वारा दी गई सजा के निलंबन का विरोध किया है.
इससे पहले, अपने जवाबी हलफनामे में, पूर्णेश मोदी ने कहा कि राहुल गांधी ने अपनी विवादास्पद मोदी उपनाम वाली टिप्पणी के लिए माफी मांगने के बजाय अहंकार दिखाया है. राहुल गांधी के वकील ने उनके खिलाफ "अहंकारी" शब्द का इस्तेमाल करने पर अपना विरोध दर्ज कराया है. प्रत्युत्तर हलफनामे में आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता से माफी मांगने के लिए आपराधिक प्रक्रिया का उपयोग न्यायिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है.
हलफनामे में कहा गया है, "बिना किसी गलती के माफी मांगने के लिए याचिकाकर्ता की बांह मरोड़ने के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत आपराधिक प्रक्रिया और परिणामों का उपयोग करना, न्यायिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए." इसके अलावा, राहुल गांधी ने अपने जवाबी हलफनामे के माध्यम से दावा किया है कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई समुदाय या समाज नहीं है जो 'मोदी' उपनाम से जाना जाता हो. हलफनामे में कहा गया है कि इसके परिणामस्वरूप, समग्र रूप से मोदी समुदाय को बदनाम करने का अपराध नहीं बनता है.
गांधी ने कहा है कि मोदी उपनाम वाले लोग अलग-अलग समुदायों या जातियों में आ सकते हैं.हलफनामे में कहा गया है, “रिकॉर्ड पर कोई मोदी समाज या समुदाय स्थापित नहीं है और केवल मोदी वनिका समाज या मोध घांची समाज ही अस्तित्व में है. [शिकायतकर्ता] ने यह भी स्वीकार किया है कि मोदी उपनाम विभिन्न अन्य जातियों के अंतर्गत आता है. यह भी स्वीकारोक्ति है कि नीरव मोदी, ललित मोदी और मेहुल चोकसी सभी एक ही जाति में नहीं आते हैं.”
यह दावा करते हुए कि दोषसिद्धि पर रोक से शिकायत को कोई नुकसान नहीं होगा, गांधी ने शीर्ष अदालत से राहत मांगी है. हलफनामे में कहा गया है कि, “दूसरी ओर, शिकायतकर्ता के साथ कोई भी पक्षपात नहीं हुआ है. इसलिए प्रार्थना की जाती है कि राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाई जाए, जिससे वह लोकसभा की मौजूदा बैठकों और उसके बाद के सत्रों में भाग ले सकें. इस मामले पर 4 अगस्त को शीर्ष अदालत में सुनवाई होनी है.
बता दें कि, एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कहा था कि, 'एक छोटा सा सवाल है, इन सब चोरों के नाम मोदी-मोदी ही कैसे हैं ? नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी..., और अभी ढूंढोगे तो बहुत सारे मोदी मिलेंगे.'' इसी बयान को लेकर उनके खिलाफ मानहानि का मामला दाखिल किया गया है. यह भी ध्यान रहे कि, अधिकतर मानहानि के मामले माफी के साथ ख़त्म हो जाते हैं , लेकिन राहुल उससे बार-बार इंकार कर चुके हैं और वो हर बार कहते रहे हैं कि, वो गांधी हैं, सावरकर नहीं, इसलिए वो माफी नहीं मांगेंगे. राहुल के इस बयान को लेकर वीर सावरकर के पोते सत्यकी सावरकर ने भी कांग्रेस नेता के खिलाफ मानहानि का मुकदमा लगा रखा है. राहुल की सजा बरक़रार रखते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने इस मामले का भी उदाहरण दिया था और कहा था कि, राहुल गांधी, एक बड़ी पार्टी के प्रमुख नेता हैं, बड़े पद पर हैं, कई वर्षों से सांसद रहे हैं, उन्हें जिम्मेदारी से बोलना चाहिए, क्योंकि उनकी बातों का लोगों पर काफी असर पड़ता है.
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