'सीएम योगी का अपमान बर्दाश्त नहीं करूँगा..', केशव मौर्य का बयान, क्या ख़त्म हुई कड़वाहट?

'सीएम योगी का अपमान बर्दाश्त नहीं करूँगा..', केशव मौर्य का बयान, क्या ख़त्म हुई कड़वाहट?
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच कथित तनाव की चर्चा पहले भी होती रही है। केशव मौर्य के बयानों ने कई बार यह संकेत दिए हैं कि वे पार्टी के अंदर अपनी अलग राय रखते हैं। हालांकि, उपचुनावों के बीच अब उनके सुर बदलते दिख रहे हैं, और उन्होंने योगी आदित्यनाथ की तारीफ की है।  

प्रयागराज में मीडिया से बात करते हुए डिप्टी सीएम ने सीएम योगी को संत बताते हुए कहा कि संत का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा, “गुंडों और अपराधियों के बीच रहकर अखिलेश यादव साधु-संतों के बारे में मर्यादा नहीं समझ सकते। योगी आदित्यनाथ एक संत हैं, और उनका अपमान प्रदेश, देश और मैं खुद सहन नहीं करूंगा। इसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को चुनावों में भुगतना पड़ेगा।” हाल ही में सीएम योगी के “बंटेंगे तो कटेंगे” नारे पर टिप्पणी करने से केशव मौर्य ने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते कि सीएम ने यह बात किस संदर्भ में कही, इसलिए इस पर कोई राय देना उचित नहीं होगा। हालांकि, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के नारे “सबका साथ, सबका विकास” और “एक हैं तो सेफ हैं” को ही अपने नारे के रूप में स्वीकार किया।  

पिछले महीने लखनऊ में बीजेपी राज्य कार्यकारिणी की बैठक में सीएम योगी और डिप्टी सीएम मौर्य के बीच विचारों का अंतर सामने आया था। योगी आदित्यनाथ ने पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए अति आत्मविश्वास को जिम्मेदार ठहराया, जबकि केशव मौर्य ने संगठन को सरकार से बड़ा बताते हुए अप्रत्यक्ष रूप से योगी सरकार पर सवाल खड़े किए। उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हैं। इससे पहले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को यूपी में बड़ा झटका लगा था, जब उसे 80 में से सिर्फ 33 सीटें मिलीं। 2019 की तुलना में यह संख्या 29 सीटें कम थी। इन नतीजों के बाद यूपी में बीजेपी की राजनीति और सरकार के कामकाज पर सवाल उठने लगे थे।  

पिछले विवादों के बावजूद, अब केशव मौर्य ने योगी आदित्यनाथ का समर्थन करते हुए उनकी तारीफ की है। यह बदलाव उपचुनावों के महत्वपूर्ण माहौल में बीजेपी की एकजुटता को दर्शाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। बीजेपी के लिए यह उपचुनाव न सिर्फ प्रतिष्ठा का सवाल है, बल्कि 2024 के चुनावों के लिए पार्टी की स्थिति को मजबूत करने का भी मौका है।

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