आपके कामकाज में कभी बाधा नहीं बनता 'लिखने' का शौक , इसकी जीती-जागती मिसाल हैं IAS नेहा गिरी

आपके कामकाज में कभी बाधा नहीं बनता 'लिखने' का शौक , इसकी जीती-जागती मिसाल हैं IAS नेहा गिरी
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जयपुर: कहते हैं कि जिसे लिखना आदमी को मुकम्मल (Complete) बना देता है, लिखने वाले व्यक्ति के मन रुपी समुन्दर में कई विचार रुपी लहरें उठती रहती हैं, जो समय-समय पर पाठक के रूप में सामने आने वाली चट्टान से इस तरह टकराती हैं, जैसे कि ये उन्हीं के लिए बह रही हैं। वहीं, वास्तविकता यह भी है कि हर कोई लिखने में माहिर नहीं होता, मगर जो होता है, उसका वास्तव में कोई जवाब नहीं होता। लिखने की कला और शब्दों का बुना गया ताना-बाना पढ़ने वाले को इस कदर अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है, जैसे लेख या कहानी का मुख्य किरदार वही हो, और उसके अनुभव पर ही यह कहानी या लेख लिखा गया हो।

यह एक ऐसा शौक है, जो आपके कामकाज या प्रोफेशन में कभी-भी बाधा नहीं बनता, जब भी आपको खाली समय मिले, लिखावट को नए मोड़ दिए जा सकते हैं। कुछ इसी तरह अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर पूरे देश के लिए मिसाल बनकर सामने आई हैं, IAS ऑफिसर नेहा गिरी, जिन्होंने 'अल्फाज़' शीर्षक नामक पूरी की पूरी किताब ही लिख डाली है। जयपुर, राजस्थान कैडर की वर्ष 2010 बैच की IAS नेहा गिरी तब से सुर्ख़ियों में है, जब से उन्होंने अपनी यह किताब राजस्थान के गवर्नर कलराज मिश्र को भेंट की। इस बात की चर्चा देश के अपने बहुभाषी माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म, Koo ऐप पर जमकर हो रही है, जिसे लेकर नेहा गिरी ने पोस्ट करते हुए लिखा है कि, 'हिंदी/उर्दू शायरी पर मेरी #पहली किताब 'अल्फाज़', मेरे आईएफएस बैचमेट श्री नितिन प्रमोद के साथ #राजस्थान के माननीय राज्यपाल को भेंट करते हुए।' जैसा कि पोस्ट से पता चलता है, यह पुस्तक हिंदी/उर्दू शायरी पर आधारित है, जिसमें पाठकों की सुविधा के लिए कुछ हिंदी और उर्दू शब्दों के मतलब भी दिए गए हैं।

 

तीन भागों में बंटी हुई है किताब:
अल्फाज़ किताब तीन हिस्सों में बंटी हुई है। पहला भाग 'नज़्म' कविताओं का संग्रह है, जिसमें हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में कविता हैं। दूसरे हिस्से 'गुफ्तगू' में शायरीनुमा सवाल-जवाब हैं, जिसमें बाएँ पेज पर नेहा गिरि की पंक्तियाँ हैं और दाएँ पेज पर नितिन प्रमोद ने अपने शानदार शायराना अंदाज में जवाब दिया हुआ हैं। अंतिम हिस्सा 'सलाम' में 'शेर' पेश किए हुए हैं। मौजूदा पुस्तक के पहले हिस्से की कुछ रचनाएँ 10 साल तक पुरानी हैं। सोशल मीडिया से जो संदेशों का आदान-प्रदान शुरू हुआ, वह दूसरे और तीसरे हिस्से की रचनाओं की शक्ल में है।


लिखना इंसान को मुकम्मल बना देता है:-
नेहा गिरी का मानना है कि अगर लिखने की इच्छा है, तो लिख डालिए, जरा भी संकोच न करें। उतारिए उसे पन्नों पर, देखिए क्या संतुष्टि मिलती है। नेहा के लिए भी इस भागमभाग से भरी दुनिया में लिखना एक साधना की तरह है, जब भी बेचैनी हुई, बस कागज़ और कलम उठाई और अपने विचारों को अक्षरों में पिरो दिया। लिखने के लिए प्रेरित करने और लेखनी की समीक्षा का क्रेडिट, IAS अफसर ने अपने दोस्त नितिन और अपने जीवन साथी और सबसे करीबी दोस्त इंद्रजीत को दिया है।

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