रायपुर: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 7 दिसंबर 2023 को दिए गए एक फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा- प्रेम संबंध असफल रहने पर अगर कोई खुदखुशी करता है तो इसके लिए उसकी प्रेमिका को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में 24 वर्षीय महिला तथा उसके भाई के खिलाफ खुदखुशी के लिए उकसाने का दर्ज केस रद्द कर दिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति पार्थ प्रीतम साहू की कोर्ट में हुई। मामला राजनांदगाँव का है। 23 जनवरी 2023 को एक युवक ने अपने घर में खुदखुशी कर ली थी। तलाशी के चलते मृतक के पास से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ था। इसमें युवक ने लिखा था कि उसका तकरीबन 8 वर्ष से एक लड़की से प्रेम संबंध था। मगर लड़की ने उससे अपने रिश्ते तोड़ कर किसी और लड़के से शादी कर ली। सुसाइड नोट में युवक ने लिखा था कि उसकी प्रेमिका ने यह कदम अपने भाइयों के बोलने पर उठाया। लड़की के 2 भाइयों पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपनी बहन पर प्रेमी से संबंध खत्म करने का दबाव बनाया था। इन सभी पर मृतक से पैसे लेने और उसे न लौटाने का भी आरोप था। राजनांदगाँव पुलिस ने इस मामले में IPC की धारा 306 एवं 34 के तहत मुकदमा दर्ज किया था। तीनों अपराधियों को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया था। 13 अक्टूबर 2023 को जिला कोर्ट ने लड़की और उसके 2 भाइयों के खिलाफ आरोप तय किए थे।
निचली अदालत में आरोप तय होने के पश्चात् अपराधियों ने इस मामले को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में चुनौती दी। सुनवाई के पश्चात न्यायमूर्ति पार्थ प्रीतम साहू ने कहा कि तीनों आरोपितों के खिलाफ केस चलाने के लिए प्रथम दृष्टया कोई ठोस सबूत नहीं है। उन्होंने कहा कि जुबानी व सुनी-सुनाई बातें आरोपितों के खिलाफ केस चलाने का पर्याप्त आधार नहीं मानी जा सकती है। अभियोजन पक्ष ने उच्च न्यायालय को बताया कि अपराधियों द्वारा मृतक को गलत केस में फँसाये जाने और गंभीर परिणाम भुगतने जैसी धमकियाँ दी गई थी। हालाँकि जस्टिस पार्थ प्रीतम साहू ने कहा कि किसी भी धमकी की गंभीरता इतनी नहीं प्रतीत हो रही कि उसके चलते किसी को खुदखुशी के लिए मजबूर होना पड़े। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है, “अगर कोई प्रेम में असफल या परीक्षा खराब होने पर खुदखुशी करता है तो इसके लिए महिला या परीक्षक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसी प्रकार केस खारिज होने पर कोई खुदखुशी कर ले तो वकील को खुदखुशी के लिए उकसाने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसा करने वाले व्यक्ति के गलत फैसले को किसी अन्य व्यक्ति को उसे उकसाने का जिम्मेदार कहकर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”
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