दुनिया के 180 से अधिक देश कोरोना संकट से बुरी तरह प्रभावित है. भारत भी उससे दो-दो हाथ कर रहा है. इसके पहले भी प्लेग, कालरा, हैजा, पोलियो, फ्लू जैसी महामारियों ने इंसानों को खतरे में डाला है लेकिन एक समय के बाद टीके, कारगर दवाओं व कुछ बीमारियों के प्रति हार्ड इम्यूनिटी विकसित होने से उन पर अंकुश लगा है. कुछ संक्रामक बीमारियों का वजूद काफी हद तक खत्म हो चुका है. जिन बीमारियों के वायरस के स्ट्रेन में बदलाव नहीं होता. उनके प्रति हार्ड इम्यूनिटी विकसित हो जाती है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि जब किसी संक्रामक बीमारी से 60 से 70 फीसद लोग संक्रमित हो जाते हैं तो यह देखा गया है कि उसके प्रति लोगों में प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाती है. कोराना वायरस का संक्रमण भी तेजी से फैल रहा है. फिर भी जिन देशों में इसके संक्रमण से अधिक लोग चपेट में आए हैं वहां भी अभी 10 से 20 फीसद लोग इससे संक्रमित नहीं हुए हैं. कई जगहों पर तो सिर्फ तीन से पांच फीसद तक ही लोग संक्रमित हुए हैं. इसलिए इसके प्रति हार्ड इम्यूनिटी विकसित होने में वक्त लगेगा. फ्लू वायरस अक्सर अपना स्वरूप बदलते हैं. यही वजह है कि फ्लू के लिए हर साल या दूसरे साल अलग टीके बनते हैं.
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गौर करने वाली बात यह है कि एक बार टीका विकसित होने के बाद नए टीके बनाना आसान हो जाता है. यदि कोरोना वायरस स्टेबल रहा, यदि इसमें जल्दी कोई म्यूटेशन नहीं हुआ तो दो-तीन साल में हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो सकती है. यदि वायरस को फैलने के लिए खुली छूट मिल जाए तो हो सकता है कि एक साल में ही इतने लोग संक्रमित हो जाएंगे और फिर लोगों में प्रतिरोधकता भी उत्पन्न हो जाएगी लेकिन यह जोखिम भरा कदम होगा. क्योंकि इसमें बहुत लोगों की जान जाएगी. यदि वायरस स्वरूप बदला तो उससे समस्या बढ़ सकती है. क्योंकि अभी यह नया वायरस है. कितने माह रहेगा, अभी स्पष्ट नहीं है. किसी भी देश को तीन-चार महीने से अधिक का अनुभव नहीं है. छह माह तक उस पर नजर रखनी होगी.
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