ढाका: बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए हालात और भी कठिन होते जा रहे हैं, क्योंकि इस्लामी कट्टरपंथी समूहों का प्रभाव बढ़ रहा है। हाल के दिनों में, कई छात्र संगठन और कट्टरपंथी खुलेआम देश में इस्लामी कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं। दुर्गा पूजा जैसे हिंदू त्योहारों को भी कट्टरपंथियों से धमकी मिल रही है।
बांग्लादेश से बड़ी खबर!
— Panchjanya (@epanchjanya) September 27, 2024
बांग्लादेश में दुर्गापूजा को बैन करो!
हम बांग्लादेश में दुर्गा पूजा नहीं होने देंगे !
बांग्लादेश में हिन्दुओं की आबादी केवल 2% इसलिए बांग्लादेश में कोई दुर्गापूजा नहीं होगा।
दुर्गा पूजा पर राष्ट्रीय छुट्टी भी नहीं होने देंगे, बांग्लादेश में दुर्गा पूजा… pic.twitter.com/LJJi8DwkOe
खबरों के अनुसार, एक हिंदू शिक्षक को दुर्गा पूजा के समर्थन में बोलने के बाद नौकरी से निकाल दिया गया। कट्टरपंथी खुलेआम धमकी दे रहे हैं कि अगर किसी ने दुर्गा पूजा का आयोजन किया, तो उसे छोड़ेंगे नहीं। कई मंदिर प्रबंधकों को धमकी भरे पत्र भेजे गए हैं, जिनमें कहा गया है कि अगर उन्होंने 5 लाख टका का भुगतान नहीं किया, तो उन्हें पूजा करने की अनुमति नहीं मिलेगी। एक धमकी भरी चिट्ठी में यह भी लिखा गया है कि अगर इस पत्र को अधिकारियों या मीडिया के साथ साझा किया गया, तो दोषियों को "टुकड़े-टुकड़े" कर दिया जाएगा। हालात इतने गंभीर हैं कि दुर्गा पूजा की तैयारी करने वालों को सीधे निशाना बनाया जा रहा है, और उन्हें बांग्लादेश छोड़कर जाने की धमकी दी जा रही है।
इस बीच, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने हाल के विरोध प्रदर्शनों के पीछे के मास्टरमाइंड का खुलासा किया। उनके अनुसार, यह आंदोलन एक स्वाभाविक जनविद्रोह नहीं था, बल्कि इसे सावधानीपूर्वक डिजाइन और संचालित किया गया था। यूनुस ने अपने सहायक महफूज आलम को इस आंदोलन का मास्टरमाइंड बताया, जो इस्लामिक स्टेट (ISIS) से जुड़े आतंकी संगठन का नेता है।
बांग्लादेश में हिंदुओं की हो रही बहुत बड़ी दुर्दशा नवरात्रियों में दुर्गा पूजा रोकने के लिए निकल रहे रेलिया
— Arvind Singh Dangi (@Arvindsinghda10) September 26, 2024
हिंदुओं का सुनने वाला वहाँ अब कोई नहीं बचा ।
हिंदुओ अभी भी आँखे खोल लो नही तो दूसरा देश नही मिलेगा। रहने के लिए pic.twitter.com/bDXjeQfhJx
अब समझा जा सकता है कि जब एक कथित शांति नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस उस आतंकी की तारीफ कर रहा है, तो लोगों को ये समझ जाना चाहिए कि आतंकवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं। भले ही आपको शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया हो, लेकिन यूनुस की मानसिकता, कट्टरपंथियों से कम नहीं है, भले ही वो उसे जाहिर नहीं होने देते। पर इस्लामी कट्टरपंथियों को यूनुस का मौन समर्थन है, वरना शेख हसीना के शासन में हिन्दुओं को दुर्गा पूजा पर इस तरह की धमकियाँ नहीं मिलती थी। कट्टरपंथी तो उस समय भी थे, लेकिन सरकार ने उन पर अंकुश लगा रखा था, अब यूनुस ने उन्हें खुली छूट दे दी है।
यह लेबनान, ईरान, पाकिस्तान या बांग्लादेश नहीं बल्कि कश्मीर (भारत) है।
— Äbhï$hëk Güptä (@mind_kracker) September 29, 2024
ये #हिज़बुल्लाह आतंकवादी #हसन नसरल्लाह की हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
पैलेट गन के डर से पत्थरबाजी बंद हो गई है लेकिन मानसिकता अभी भी वही है;
आतंकवाद समर्थक...
इस आतंकवादी के मारे जाने के विरोध… pic.twitter.com/p0LYaCKNxz
भारत में आतंकी नसरल्लाह की मौत पर मातम:-
हालाँकि, गौर करने वाली बात ये भी है कि एक तरफ जहाँ बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों ने गैर-मुस्लिमों का जीना हराम कर रखा है, वहीं, भारत के विपक्षी राजनेता इस पर मौन हैं। उन्हें चिंता है तो लेबनान में मारे जा रहे हिजबुल्लाह के आतंकियों की। शनिवार-रविवार को कश्मीर में हज़ारों मुस्लिमों ने नसरल्लाह की मौत के विरोध में मार्च निकाला है। ये सब PDP चीफ महबूबा मुफ़्ती और कुछ कश्मीरी नेताओं की बयानबाज़ी के बाद हुआ। महबूबा ने नसरल्लाह की मौत पर दुःख जताते हुए अपने चुनावी दौरे रद्द कर दिए और शोक मनाया। इसी तरह कांग्रेस की गठबंधन साझीदार नेशनल कांफ्रेंस (NC) के नेताओं ने भी मातम मनाया। हालाँकि, इन नेताओं को अपने ही पड़ोसी देश का हाल नहीं दिखा, जहाँ कट्टरपंथियों ने आतंक मचा रखा है। इन लोगों को हज़ारों किलोमीटर दूर मारे गए नसरल्लाह में तो अपनापन नज़र आता है, लेकिन कुछ सालों पहले जिन लोगों के साथ ही एक देश में रहते थे, उन बांग्लादेशी पीड़ितों का दर्द नज़र नहीं आता, शायद इसीलिए कि वो मुस्लिम नहीं हैं। इस मानसिकता को आप क्या कहेंगे ?
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