भारत के एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजों के साथ जंग की. और भगत सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी. भगत सिंह को फांसी हुई पर उनको नही. वो आजादी के बाद तक जिंदा थे. लेकिन आप ये नहीं जानते होंगे की देश ने उनके साथ क्या किया, तो चलिए आज हम आपको कुछ ऐसा बताने जा रहे जिसको सुनने के बाद आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. स्वतंत्रता संग्राम में एक घटना थी जिसने भारतीय इतिहास में वीरता का नया अध्याय लिख चुके है. ये घटना थी दिल्ली की नेशनल असेम्बली में भगत सिंह ने जब बम फेंका था. बम फेंकते समय भगत सिंह ने कहा था: ‘अगर बहरों को सुनाना हो तो आवाज़ ज़ोरदार करनी होगी’. इस घटना में एक और क्रान्तिकारी था जिसने भगत सिंह के साथ ही गिरफ़्तारी दी थी.
वो क्रान्तिकारी थे बटुकेश्वर दत्त. भगत सिंह पर कई केस थे. उनको तो फांसी की सजा सुना दी जा चुकी थी, लेकिन बटुकेश्वर दत्त इतने खुशकिस्मत नहीं थे उनको अभी बहुत परेशानियों का सामना करना बाकी था. अंग्रेजी सरकार ने उनको उम्रकैद की सज़ा सुना दी और अंडमान-निकोबार की जेल में भेज दिया, जंहा उन्हें कालापानी की सजा सुना दी गई थी .कालापानी की सजा के दौरान ही उन्हें टीबी हो गई थी जिससे वे मरते-मरते बचे. जेल में जब उन्हें पता चला कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सज़ा सुनाई गई है तो वो बहुत उदास हुए. उनकी निराशा इस बात को लेकर नहीं थी कि उनके तीनों साथी अपनी आखिरी सांसें गिन रहे हैं. उन्हें दुःख था तो सिर्फ इस बात का कि उनको फांसी क्यों नहीं दी जा रही.
देश आज़ाद होने के बाद बटुकेश्वर दत्त भी रिहा कर दिए गए थे. लेकिन दत्त को जीते जी भारत उन्हें भुला दिया. लेकिन इस बात का खुलासा नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब “बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह के सहयोगी” में किया गया है. वहीं जेल से छूटने के बाद भी उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, इतना ही नहीं उसके कुछ समय बाद उन्हें कैंसर हो गया था, जिसका इलाज़ करवाने के लिए उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट किया गया था, जंहा 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर पचास मिनट पर भारत के इस महान सपूत ने दुनिया को अलविदा कह दिया. उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के ही अनुसार भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि के पास किया गया.
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