नवरात्रि में कर रहे है दुर्गा सप्तशती का पाठ तो इन नियमों का करें पालन

नवरात्रि में कर रहे है दुर्गा सप्तशती का पाठ तो इन नियमों का करें पालन
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साल में 4 बार नवरात्रि पड़ती है- माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन. आश्विन की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है. नवरात्रि के वातावरण से तमस का अंत होता है, नकारात्मक माहौल की समाप्ति होती है. शारदीय नवरात्रि से मन में उमंग तथा उल्लास की वृद्धि होती है. दुनिया में सारी शक्ति नारी या स्त्री स्वरूप के पास ही है इसलिए नवरात्रि में देवी की आराधना ही की जाती है तथा देवी शक्ति का एक स्वरूप कहलाती है, इसलिए इसे शक्ति नवरात्रि भी कहा जाता है. नवरात्रि के 9 दिनों में देवी के अलग अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसे नवदुर्गा का स्वरूप कहा जाता है. 

वही इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से आरंभ होने जा रही है तथा समापन 24 अक्टूबर को होगा और 10वें दिन दशहरा मनाया जाता है. मान्यता है कि जो भक्त नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है. सनातन धर्म में नवरात्रि के चलते तमाम सनातनियों के यहां दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है. कुछ लोग इसके लिए वेदपाठी ब्राह्मणों को आमंत्रित करते हैं तो वहीं ज्यादातर घरों में महिला व पुरुष स्वयं सप्तशती का पाठ करते हैं. लेकिन इसके कई नियम हैं. आइये आपको बताते है...

दुर्गा सप्तशती पाठ करने के नियम:-
नवरात्रि के प्रथम दिन ही दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ करें. पाठ करने के चलते पुस्तक को लाल कपड़े में रखें.
एक दिन में ही दुर्गा सप्तशती के सभी 13 पाठ पूरे करने का विधान है. अगर वक़्त की कमी की वजह से न कर पाएं तो नौ दिनों में भी पूरे 13 पाठ पूरे किए जा सकते हैं.
किसी भी अध्याय का पाठ करते वक़्त बीच में न उठे. अध्याय को पूरा करें, तब उठें.
अगर नवरात्रि के हर दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं तो पहली बार में चतुर्थ अध्याय पूरा करने के पश्चात् ही उठें. फिर पुन: हाथ-पांव धोकर अध्याय आगे बढ़ाएं.
पाठ के चलते गति न ही बहुत तेज हो तथा न ही धीमी हो. शब्दों का उच्चारण स्पष्ट और लय में होना चाहिए.
दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करने से पहले हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए, फिर माता रानी को ध्यान में रखते हुए पाठ आरंभ करना चाहिए.
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले को मांस-मदिरा, लहसुन-प्याज का सेवन किसी भी हाल में नहीं करना चाहिए.
मान्यता के अनुसार, दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से सभी प्रकार के अधूरे फल की प्राप्ति होती है.

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