बीमार मानव सभ्यता दर्द से कराहने का अभिनय करती है

बीमार मानव सभ्यता दर्द से कराहने का अभिनय करती है
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लेबनान के मशहूर लेखक, कलाकार, दार्शनिक विचारक के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले खलील जिब्रान वैसे तो अपनी ज़िंदगी में कई समस्याओं से जूझते रहे, लेकिन अपनी कलम के जादू से दुनिया में जो मुकाम पाया है वो हम सभी जानते है. जिब्रान का ऐसा ही एक किस्सा जो शोषित तबकों को उठाने का काम करता है, उस पर एक कटाक्ष करता है, जिसे समझने की जरूरत हर एक भारतीय को है.

खलील जिब्रान की एक कहानी में उन्होंने लिखा है कि मैंने जंगल में रहने वाले एक फ़कीर से पूछा कि आप इस बीमार मानवता का इलाज क्यों नहीं करते . तो उस फ़कीर ने कहा कि तुम्हारी यह मानव सभ्यता उस बीमार की तरह है जो चादर ओढ़ कर दर्द से कराहने का अभिनय तो करता है. पर जब कोई आकर इसका इलाज करने के लिये इसकी नब्ज देखता है तो यह चादर के नीचे से दूसरा हाथ निकाल कर अपना इलाज करने वाले की गर्दन मरोड़ कर अपने वैद्य को मार डालता है और फिर से चादर ओढ़ कर कराहने का अभिनय करने लगता है.

.धार्मिक, जातीय घृणा, रंगभेद और नस्लभेद से बीमार इस मानवता का इलाज करने की कोशिश करने वालों को पहले तो हम मार डालते हैं . उनके मरने के बाद हम उन्हें पूजने का नाटक करने लगते हैं. यही सबकुछ भारत में अब तक होता आया है. जिब्रान की छोटी-छोटी बातों में इतना कुछ सिखने के लिए, जो देश में हो रहे मज़हबी झगड़ों, जातिवादी जैसी समस्याओं के निराकरण और मानवता को ऊपर उठाने में कारगर साबित हो सकते है.a

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