IMF ने मानी भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत, इस साल ग्लोबल इकॉनमी को चलाएंगे चीन और हिंदुस्तान !

IMF ने मानी भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत, इस साल ग्लोबल इकॉनमी को चलाएंगे चीन और हिंदुस्तान !
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नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने इस वर्ष 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था के 3 फीसद से कम बढ़ने का अनुमान जताया है. हालांकि, IMF ने अनुमान जताया है कि, 2023 में वैश्विक ग्रोथ में भारत और चीन का 50 फीसद हिस्सा रहेगा. यानि IMF ने भी भारत के ग्लोबल इकोनॉमिक ग्रोथ की शक्ति को स्वीकार कर लिया है और माना है कि 2023 में भारत और चीन मिलकर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को चलाएंगे. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास होगा.

IMF प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने चेतावनी दी है कि गत वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में तीव्र मंदी के बाद महामारी और यूक्रेन पर रूस का हमला इस साल भी जारी रहेगा. आर्थिक गतिविधि की धीमी गति की समय सीमा अभी और लंबी होगी, अगले पांच वर्षों में 3 फीसद से कम वृद्धि देखने को मिलेगी. IMF के अनुसार, 1990 के बाद से हमारा सबसे कम मध्यम अवधि का आर्थिक विकास का अनुमान और बीते दो दशकों से 3.8 फीसद के औसत से बहुत नीचे है. भारत और चीन को 2023 में अंतर्राष्ट्रीय विकास का आधा हिस्सा होने का अनुमान है. जॉर्जीवा ने कहा है कि 2021 में इकोनॉमी में एक मजबूत रिकवरी के बाद यूक्रेन में रूस के युद्ध और इसके व्यापक परिणामों का बहुत प्रभाव पड़ा है. वहीं 2022 में वैश्विक ग्रोथ गिरकर 6.1 से 3.4 फीसद (लगभग आधी) रह गई है.

जॉर्जीवा ने कहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीमी गति से वृद्धि होना एक बड़ा संकट हो सकता है, इससे कम आय वाले देशों में गरीबी और भुखमरी और बढ़ सकती है, जैसे एक खतरनाक स्थिति जो कोरोना महामारी से शुरू हुई थी. सूत्रों के अनुसार, पॉलिसी निर्माता वैश्विक अर्थव्यवस्था के सबसे ज्यादा दबाव वाले मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक मीटिंग बुलाएंगे. जो कि एक वार्षिक मीटिंग होगी.

बता दें कि, पूरे विश्व के केंद्रीय बैंक तेजी से बढ़ती महंगाई दरों को कम करने के लिए ब्याज दरों में इजाफा जारी रखते हैं. करीब 90 फीसद एडवांस अर्थव्यवस्थाओं को इस वर्ष अपनी ग्रोथ रेट में गिरावट दिखने की संभावना है. साथ ही कम आमदनी वाले देशों के लिए हाई उधारी लागत उनके निर्यात की कमजोर मांग के वक़्त आती है. IMF के अनुसार, ग्लोबल बैंकिग सिस्टम 2008 के आर्थिक संकट के बाद से एक लंबा सफर तय कर चुका है, कमजोरियों के बारे में अभी भी चिंता बनी हुई है, जो न सिर्फ बैंकों में बल्कि गैर-बैंकों में चिंता हो सकती है.

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