शौचालय की कमी की बलि चढ़ते हमारे बच्चे, शोध में सामने आए भयावह आंकड़े

शौचालय की कमी की बलि चढ़ते हमारे बच्चे, शोध में सामने आए भयावह आंकड़े
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नई दिल्ली: भारत में स्वच्छता का नारा बहुत पुराना है, किन्तु अभी भी देश की एक बड़ी आबादी गंदगी के बीच अपना जीवन बिताने को विवश है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, राष्ट्रीय स्वच्छता कवरेज 46.9 फीसद है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह एवरेज महज 30.7 फीसद है. यहां सार्वजनिक शौचालय भी उचित मात्रा में नही हैं, जिसके कारण हमारे शहरों में भी एक बड़ी आबादी खुले में शौच करने को विवश है. इसी तरह से देश में लगभग 40 प्रतिशत लोगों को पीने योग्य स्वच्छ पानी मुहैया नहीं है. देश में साफ-सफाई की कमी एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इसी से जानलेवा बीमारियां फैलती हैं और इसका बुरा असर सबसे अधिक बच्चों पर ही पड़ता है. 

विभिन्न राष्ट्रीय व वैश्विक मंचों पर बच्चों के स्वास्थ्य और उनके शारीरिक, मानसिक विकास के लिए बाल स्वच्छता को काफी महत्वपूर्ण माना गया है, किन्तु दुर्भाग्य से भारत में 14 वर्ष की आयु के बच्चों में से 20 प्रतिशत से अधिक बच्चे असुरक्षित पानी, अपर्याप्त स्वच्छता या अपर्याप्त सफाई की वजह से या तो बीमार रहते हैं या मौत का शिकार हो जाते हैं. इसी तरह सफाई के अभाव की वजह से डायरिया से होने वाली मौतों में 90 प्रतिशत पांच साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं. स्वच्छता का संबंध शिक्षा से भी है. स्कूलों में शौचालय न होने का प्रतिकूल असर बच्चों विशेषकर बालिकाओं की शिक्षा पर पड़ता है. डाइस रिपोर्ट 2013-14 के मुताबिक, अभी भी देश के लगभग 20 फीसद प्राथमिक स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय नहीं हैं. इस वजह से लड़कियों को कई बार शर्मिंदगी झेलना पड़ती है और कई बार ये लड़कियां अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का शिकार भी बन जाती हैं.

बता दें कि सरकार द्वारा 1999 में संपूर्ण स्वच्छता अभियान कार्यक्रम आरंभ किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण भारत में संपूर्ण स्वच्छता लाना और 2012 तक खुले में शौच को सिरे से समाप्त करना था. इसमें घरों, विद्यालयों तथा आंगनबाड़ियों में स्वच्छता सुविधाओं पर विशेष बल दिया गया है. स्वच्छता अभियान के तहत स्थानीय स्तर पर पंचायतों को जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे गांव के स्कूल, आंगनबाड़ी, सामुदायिक भवन, स्वास्थ्य केंद्र व घरों में समग्र रूप से बच्चों को पेयजल, साफ -सफाई व स्वच्छता के साधन मुहैया कराएं, किन्तु यह कार्यक्रम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में बुरी तरह नाकाम रहा. इस कार्यक्रम के नाकाम होने का मुख्य कारण यह था कि इस कार्यक्रम को बनाने से पहले सोचा गया कि यदि लोगों को सुविधाएं पहुंचा दी जाएं, तो लोग उनका इस्तेमाल करेंगे और समस्या समाप्त हो जाएगी, किन्तु इसमें स्वच्छता व्यवहार में सुधार की पूरी तरह अनदेखी की गई, जिससे समस्या जस की तस बनी हुई है.

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