माना जाता है कि होली शब्द का ईजाद हिरण्याकश्यप की बहन होलिका के नाम से हुआ. कहा जाता है कि होलिका के पास एक ऐसा कपडा था जिसे ओढ़ने के बाद आग में जलने से बचा जा सकता था. भगवत पुराण के अनुसार होलिका ने अपने भाई के कहने पर हिरण्याकश्यप के बेटे प्रह्लाद को लेकर होलिका चिता पर बैठने का फैसला किया. लेकिन भगवान् विष्णु की कृपा से होलिका चिता पर होलिका का दहन हो गया और प्रह्लाद सकुशल बाहर निकल आए. प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे. तब से ही इस दिन को होलिका दहन और बुराई पर अच्छाई पर जीत के रूप में मनाया जाने लगा. इस त्योहार को प्रेम के त्योहार के रूप में मनाया जाता है.
इस दिन लोग आपस के मन-मुटावों को भूलकर प्रेमभाव से गले मिलते है. हममे से ज्यादातर लोगों ने देखा होगा कि देखा होगा कि लोग होलिका दहन की अगली सुबह होली जलने के स्थान पर जाते हैं और वहां होली की भस्म उड़ाकर जश्न मानते है और कुछ लोग इसे अपने साथ भी ले जाते है. इस भष्म का काफी महत्त्व होता है. हम आपको बताते है इसे अपने घर ले जाने के पीछे क्या कारण होता है. ऐसा कहा जाता है कि होली की भस्म बेहद शुभ होती है. इसमें कई देवी देवताओं की कृपा बसी होती है. कहते है इसे माथे पर लगाने से भाग्य बढ़ता है और बुद्धि का भी विकाश होता है.
इस भस्म को लेकर कई प्रकार कि मान्यताये प्रचलित है. कहते है इस भस्म के अंदर शरीर में मौजूद दूषित द्रव्य सोख लेने की क्षमता होती है. कहा जाता है इस भस्म का लेप लगाने से कई प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते है. अन्य मान्यताओं की बात करें तो ऐसा भी कहा जाता है कि होलिका की भष्म को अगले दिन अपने घर लाने से घर की नकारात्मक शक्तियों का असर कम हो जाता है. कुछ लोग भूत प्रेत और तंत्र मन्त्र से बचने के लिए इस भस्म को ताबीज में भरकर पहनते है.
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