सनातन धर्म में सोलह संस्कारों में से एक है- विवाह संस्कार। हिन्दू संस्कृति में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता है। जन्मों-जन्मों का यह रिश्ता बना रहे, इसके लिए विवाह से पहले वर और वधु की कुंडली का मिलान किया जाता है। हिन्दू धर्म में कुंडली का अपना एक अलग महत्व है और इसी कारण शादी से पहले कुंडली का मिलान किया जाता जिससे यह पता लगाया जाता है की लड़का और लड़की के गुण कितने मिल रहे है या नहीं| यदि कुंडली का मिलान करवाने के बाद भी कुंडली एक दूसरे से नहीं मिलती है तो रिश्ते टूटने के दर बना रहता है या फिर किसी टोटके या उपाय से कुंडली को मिलान किया जाता है |
वर-कन्या की कुंडलियों को देखकर उनके बीच 36 गुणों को मिलाया जाता है, दोनों के बीच 36 में से कम से कम 18 गुण मिलने चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, विवाह के लिए वर-कन्या की कुंडलियों को मिलना आवश्यक है। क्योंकि इससे यह ज्ञात किया जाता है कि लड़का-लड़की के नक्षत्र और ग्रह आदि एक दूसरे के लिए अनुकूल हैं या प्रतिकूल।
यदि वर और कन्या दोनों के नक्षत्र और गुण अनुकूल होते हैं तो उनका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है, लेकिन अगर दोनों की कुंडली में ग्रह नक्षत्र मेल नहीं खाते हैं तो उनका दांपत्य जीवन आगे चलकर कष्टमय बीतता है। दोनों के बीच आपसी तालमेल नहीं बनता है। हालांकि जो लोग ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास नहीं करते हैं वे मानते हैं कि विवाह के लिए कुंडली मिलान से ज्यादा जरूरी एक-दूसरे के प्रति स्नेह, विश्वास और आपसी समझ है।
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