दोस्तों, उम्र के साथ हर चीज़ बदलती है. इसी बीच हर चीज़ को लेकर हमारी उत्सुकता भी बढ़ने लगती है. यहीं कारण है कि हम हर चीज़ के बारे में जानना चाहते हैं और महसूस करना चाहते हैं. इससे हमारा जनरल नॉलेज भी बढ़ता है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए आज हम आपके लिए लेकर आए है कुछ ऐसी जानकारी जिसके बारे में आपने सोचा तो होगा लेकिन जानने की कोशिश नही की होगी-
दरअसल, हम ट्रेन में सफ़र के दौरान हम देखते है कि दो ट्रेनों का सिग्नल होता है जिसके बाद एक ट्रेन पहले स्टेशन क्रॉस करती है और दूसरी ट्रेन उसके जाने के कुछ वक़्त बाद निकलती है. इस दौरान आपके मन में कई तरह के सवाल आते होंगे जिनमे से एक सवाल यह भी होता है कि हमारी ट्रेन कितनी देर बाद चलेगी? आपको बता दें, इस तरह की कंडीशन में दो तरह के सिस्टम का उपयोग किया जाता है पहला एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम और दूसरा है ऑटोमेटिक ब्लॉक सिस्टम.
सबसे पहले बात करते है एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम की जिसमें एक ट्रेन स्टेशन से करीब 6 से 8 किमी दूर होती है या दूसरे स्टेशन पर पहुँच जाती है तब दूसरी ट्रेन को जाने का सिग्नल दिया जाता है. वहीं ऑटोमेटिक ब्लॉक सिस्टम में सिग्नल के तौर पर ग्रीन, रेड और येलो होते है. इनमें एक ट्रैकर होता है जो ट्रेन की दूरी के अनुसार ग्रीन, रेड और येलो सिग्नल देता है.
इसके साथ ही आपने स्टेशन पर इस तरह के बॉक्स तो देखे ही होंगे, लेकिन इसके अन्दर आखिर होता क्या है और वह क्यों लगाए जाते है? इस बारे में आप कुछ नहीं जानते होंगे लेकिन इस वीडियो के देखने के बाद आप जान जाएँगे. दरअसल, रेलवे ट्रैक पर एक एक्सेल काउंटर लगा होता है जो ट्रेन के पहियों को गिनने का काम करता है. यह स्टेशन के शुरु होते ही देखने को मिलते है जो चेक करते है कि ट्रेन में टोटल कितने पहिये है. इसके बाद यह स्टेशन के ख़त्म होने पर नज़र आते है जो यह चेक करते है कि ट्रेन के पहिये उतने ही है या नहीं.
यह यात्रियों की सेफ्टी के लिए होता है क्योंकि कभी-कभी ट्रेन का डिब्बा अलग हो जाता है और रास्ते में ही रह जाता है लेकिन इससे पता लग जाता है कि ट्रेन के डिब्बे और पहिये प्रॉपर है या नहीं. आपको बता दें, इस बॉक्स में एक डिवाइस लगा होता है जिसमें ग्रीन और रेड बटन होते है. यहीं दो बटन दर्शाते है कि ट्रेन की क्या स्थिति है.
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