चुनाव से पहले हरियाणा कांग्रेस में भगदड़, कहीं ले न डूबे ये बगावत !

चुनाव से पहले हरियाणा कांग्रेस में भगदड़, कहीं ले न डूबे ये बगावत !
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चंडीगढ़: हरियाणा में 2024 के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र कांग्रेस पार्टी अंदरूनी कलह और बगावत की समस्याओं से जूझ रही है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस के बागी नेता उसके लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे। 5 अक्टूबर को मतदान और 8 अक्टूबर को मतगणना के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि कांग्रेस सत्ता में वापसी कर पाएगी या नहीं, लेकिन अभी तक की स्थिति को देखते हुए पार्टी के सामने बड़ी चुनौतियाँ खड़ी हैं।

जैसे ही कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा की, पार्टी में इस्तीफों का सिलसिला शुरू हो गया। साढौरा में रेणु बाला की उम्मीदवारी से बृजपाल और पिंकी छप्पर ने पार्टी छोड़ दी, जबकि नीलोखेड़ी में रामकुमार वाल्मीकि ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। शाहबाद में रामकरण काला की उम्मीदवारी से प्रेम हिंगाखेड़ी नाराज हैं, और बरोदा में इंदुराज सिंह नरवाल की टिकट के कारण जितेंद्र हुड्डा भी निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। इन घटनाओं से पार्टी के भीतर बढ़ती गुटबाजी और बगावत की तस्वीर साफ हो रही है।

 

पार्टी के भीतर चल रही इस खींचतान में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस महासचिव कुमारी शैलजा के बीच भी सीएम पद को लेकर तनाव स्पष्ट है। शैलजा ने खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताया है और अपने प्रचार के दौरान कहा कि उन्हें कार्यकर्ता सीएम कहकर बुलाते हैं। दूसरी ओर, हुड्डा उम्मीदवार चयन में अपना प्रभाव दिखा रहे हैं, जिससे पार्टी के अंदर की गुटबाजी और बढ़ गई है। कांग्रेस की पहली सूची में हुड्डा गुट से 28 उम्मीदवार और शैलजा गुट से सिर्फ 4 उम्मीदवार शामिल हैं।

कांग्रेस ने इस चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ गठबंधन करने की कोशिश की थी, लेकिन सीट बंटवारे पर सहमति न बन पाने के कारण यह योजना विफल हो गई। अब कांग्रेस सभी 90 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है।

2014 और 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जीत दर्ज की थी और जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 31 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा ने 40 सीटें जीती थीं। अब, आंतरिक संघर्ष, बगावत और उम्मीदवारों के इस्तीफे कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। चुनाव का परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टी इन समस्याओं का समाधान कर पाती है या नहीं, और क्या वह मतदाताओं के सामने एकजुट चेहरा पेश कर सकेगी।

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