झाबुआ से दिलीप सिंह वर्मा की रिपोर्ट
झाबुआ। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ और आलिराजपुर जिलों में इन दिनों बारिश के मौसम में आने वाली प्रसिद्ध सब्जी किकोड़े की भरपूर आवक हो रही है। इन दोनों जिलों में किकोड़े पहाडी क्षेत्रों में भरपूर मात्रा में पैदा होता है, किकोड़े की सब्जी को बडी ही लोकप्रियता के साथ आदिवासीयों के साथ ही साथ अन्य सभी लोग भी बडे ही चाव से खाते है। किकोड़े की सब्जी के लिये कहां जाता है कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जी की श्रेणी में आती है सोशल मिडिया में किकोड़े को लेकर कई तरह की जानकारी और आलेख भी दिये गये है। झाबुआ आलिराजपुर जिले में जितना कडकनाथ मुर्गा प्रसिद्ध है और खाया जाता है उसी तरह से बारिश के सिजन में किकोड़े भी प्रसिद्ध होकर खाये जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखे तो किकोड़े में कई तरह के विटामिन और फायबर पाये जाते है। इसके खाने से शुगर की बिमारी पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है, तथा यह शक्ति वर्धक भी होता है। किकोड़े की मांग मध्यप्रदेश सहित गुजरात में सबसे ज्यादा होती है जिसके चलते झाबुआ और आलिराजपुर जिलों से व्यापारी किकोड़े पचास से साठ रूपये किलों आदिवासीयों से खरीदकर इसे गुजरात के बडौदा, सूरत तथा मध्यप्रदेश के इंदौर समेत कई मंडियों में भेजते है जहां पर इसका भाव 150 से लेकर 200 रूपये किलो तक रहता है, इंदौर में इस बार किकोड़े 250 रूपये किलो तक बिक रहे है।
झाबुआ आलिराजपुर जिलों में किकोड़े के अतिरिक्त बारिश के सिजन में अन्य सब्जीयों में करेला, तुरई, गिलकी, भिडी, लोकी, चवला, कदू आदि सब्जीयां के साथ ही ककडी, भूटे, काचरा आदि भी बडी संख्या में आते है और इनकी भी मांग खासी रहती है। आदिवासीयों ने इन फसलों की नवाई करना प्रारंभ कर दी है, नवाई अर्थात पहली फसल भगवान को चढाने एवं अपने सेठ साहूकारों को भेंट देने के बाद आदिवासी अपने खाने के उपयोग में लेते है। इसे फसल पकने के उपलक्ष्य में मनाये जाने वाले नवाई पर्व के रूप में भी जाना जाता है। इसके बाद जिले में इन सब्जीयों की बिक्री बढ जाती है और बहुतायात से ये मिलने लगती है। इंदौर अहमादाबाद रोड हो या फिर दिल्ली बाम्बे रेल्वे के दाहोद से लगाकर रतलाम तक का रेल्वे सफर इन सभी जगहों पर ये फसले बेचते हुए आदिवासी बडी संख्या में मिल जाते है और राहगीर भी इनसे ये सब्जीयां खरीदते हुए देखे जा सकते है।
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