नई दिल्ली: राज्यसभा में आज संविधान पर चर्चा की शुरुआत केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस के पुराने दिनों की याद दिलाई, जब उसने सत्ता में रहने के समय संविधान में कई संशोधन किए थे, और आज आरोप लगा रही है कि भाजपा संविधान बदल देगी। सीतारमण ने जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी सहित पूर्व कांग्रेस नेताओं की याद दिलाते हुए कहा कि ''उन्होंने जो संविधान संशोधन किए थे, वे लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए नहीं, बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की रक्षा के लिए थे।''
राज्यसभा में सीतारमण ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, 50 से अधिक देश आज़ाद हो गए और उन सबके पास लिखित संविधान मौजूद था, मगर कई देशों ने अपना पूरा संविधान बदल दिया, लेकिन भारत का संविधान वक़्त की कसौटी पर खरा उतरता गया। वित्त मंत्री ने कहा कि, "भारत के अनुभव से ये साबित होता है कि एक संविधान कई संशोधनों के बाद भी सशक्त बना रहता है, जो समय की मांग थी।''
सीतारमण ने आगे कहा कि, ''मैं 1951 के पहले संविधान संशोधन अधिनियम के बारे में बात करना चाहूंगी। 15 अगस्त, 1947 से लेकर अप्रैल 1952 तक देश में अंतरिम सरकार (नेहरू सरकार, बिना चुनाव के) थी, जिसके बाद एक निर्वाचित सरकार ने कार्यभार संभाला। लेकिन 1951 के दौरान, जब पहला संवैधानिक संशोधन पारित किया गया था, तो यह एक अंतरिम सरकार थी, न कि एक निर्वाचित सरकार। संशोधन ने अनुच्छेद 19 (2) में तीन और शीर्षक जोड़े, जिसमें कहा गया कि सार्वजनिक व्यवस्था अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने की एक वजह हो सकती है, विदेशियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कारण हो सकते हैं या किसी अपराध के लिए उकसाना भी एक कारण हो सकता है। ये उस समय लाए गए संशोधन थे।"
वित्त मंत्री ने इस संशोधन से एक साल पहले 1950 में सुप्रीम कोर्ट के दो "ऐतिहासिक" फैसलों का भी हवाला दिया, जिसने अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत प्रेस की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। सीतारमण ने कहा कि, "कई उच्च न्यायालयों ने भी हमारे नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखा, लेकिन अंतरिम सरकार ने जवाब में सोचा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) द्वारा लाया गया पहला संशोधन आवश्यक था और यह अनिवार्य रूप से स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए था।"
उन्होंने यह भी कहा कि भारत, एक लोकतांत्रिक देश है, जो आज भी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर गर्व करता है, लेकिन उसने पहली अंतरिम सरकार को ही एक संवैधानिक संशोधन के साथ आते देखा, जिसका उद्देश्य भारतीयों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना था और यह संविधान को अपनाने के मात्र एक वर्ष के भीतर किया गया था।" उनके इस भाषण पर कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल जमकर शोर मचाने लगे और सदन में हंगामा होने लगा।
हालाँकि, सीतारमण फिर भी बोलती रहीं, उन्होंने अपनी आवाज़ ऊँची कर ली और कहा कि, ''अंतरिम सरकार ने संशोधन से पहले और उससे पहले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना जारी रखा।'' सीतारमण ने याद दिलाया कि, ''मजरूह सुल्तानपुरी और बलराज साहनी दोनों को 1949 में जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ एक कविता सुनाने के लिए जेल में डाल दिया गया था। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का कांग्रेस का रिकॉर्ड इन दो लोगों तक ही सीमित नहीं है।" इसके अलावा,निर्मला सीतारमण ने इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के बीच आए फैसले का भी जिक्र किया, जिसे रद्द करने के लिए कांग्रेस सरकार ने संविधान संशोधन किया था। इस फैसले में इलाहबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को खारिज कर दिया था और उनकी प्रधानमंत्री की कुर्सी खतरे में थी, जिसके बाद कांग्रेस ने अपनी सत्ता बचाने के लिए संविधान में संशोधन किया था।
सीतारमण ने कहा कि, "इस मामले के सर्वोच्च न्यायालय में लंबित रहने के दौरान, कांग्रेस ने 1975 में 39वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया, जिसमें संविधान में अनुच्छेद 392 (ए) जोड़ा गया, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनावों को देश की किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती और यह केवल संसदीय समिति के समक्ष ही किया जा सकता है। कल्पना कीजिए कि किसी व्यक्ति ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए अदालत के फैसले से पहले ही संशोधन कर दिया।"
इसके बाद सीतारमण ने इंदौर के शाह बानो मामले का भी जिक्र किया, जिसमे मुस्लिम कट्टरपंथियों ने शाह बानो को तलाक देने के बाद उसे गुजारा-भत्ता देने से इंकार कर दिया था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि गुजारा भत्ता मिलना चाहिए, लेकिन मुस्लिम वोट बैंक के दबाव में आकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। सीतारमण ने कहा कि, "शाह बानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय से आए फैसले के बाद, कांग्रेस ने मुस्लिम महिला तलाक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1986 पारित किया, जिसने मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने के उनके अधिकार से वंचित कर दिया। हमारी पार्टी ने नारी शक्ति अधिनियम पारित किया, जबकि इस अधिनियम द्वारा मुस्लिम महिलाओं के अधिकार को नकार दिया गया।"
सीतारमण ने देश में आपातकाल पर भी बयान दिया, उन्होंने कहा कि, "18 दिसंबर 1976 को तत्कालीन राष्ट्रपति ने 42वें संविधान संशोधन अधिनियम को मंजूरी दी थी। आपातकाल के दौरान जब उचित औचित्य के बिना लोकसभा का कार्यकाल बढ़ा दिया गया था। विस्तारित कार्यकाल में जब पूरा विपक्ष जेल में डाल दिया गया था, तब संविधान संशोधन आया। यह पूरी तरह से अमान्य प्रक्रिया थी। लोकसभा में केवल पांच सदस्यों ने विधेयक का विरोध किया। राज्यसभा में इसका विरोध करने वाला कोई नहीं था। संशोधन लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए नहीं बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की रक्षा के लिए थे।"