वस्तु शास्त्र दिशाओ पर आधारित माना गया है, इसमें दिशा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। वास्तुशास्त्र में मानव से जुड़ी जितनी भी समस्याएं हैं सभी के समाधान के लिए दिशा को उपयोगी बताया है। वहीं अगर दक्षिण दिशा की बात की जाए, तो वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा को बहुत ही अपशकुन माना जाता है। इसका अपशकुन मानने का कारण कुछ और नहीं बल्कि यह माना जाता है कि इस दिशा में यम का वास होता है। और इसी वजह से हमें अपने अधिकतर कामों को दक्षिण दिशा में नहीं करना चाहिए। अगर आपने कुछ काम है, जो कर भी लिये हैं तो उसके समाधान के लिए आप वास्तुशास्त्र के कुछ उपाय को अपना सकते हैं, तो चलिए जानते हैं इन उपायों के बारे में....
दक्षिण की तरफ मुख्य द्वार- घर का मुख्य दरवाजा कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ नहीं होना चाहिए। यदि आपका दरवाजा दक्षिण की तरफ है, तो द्वार के ठीक सामने एक आदमकद दर्पण इस प्रकार लगाएं, जिससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति का पूरा प्रतिबिंब दर्पण में बने। इससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ घर में प्रवेश करने वाली नकारात्मक उर्जा पलटकर वापस चली जाती है। द्वार के ठीक सामने आशीर्वाद मुद्रा में हनुमानजी की मूर्ति अथवा तस्वीर लगाने से भी दक्षिण दिशा की ओर मुख्य द्वार का वास्तुदोष दूर होता है।
मंद होती है फेफड़ों की गति- दक्षिण दिशा में सोने से फेफड़ों की गति मंद हो जाती है। इसीलिए मृत्यु के बाद इंसान के पैर दक्षिण दिशा की ओर कर दिए जाते हैं, ताकि उसके शरीर से बचा हुआ जीवांश समाप्त हो जाए। दक्षिण, यम की दिशा मानी जाती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार यम को मृत्यु का देवता माना जाता है। इसके अलावा यदि आपकी तिजारो इस दिशा में है, तो बरकत एवं लाभ के लिए दिशा बदल लेनी चाहिए। वहीं, शौचालय में सीट इस प्रकार रखनी चाहिए कि शौच करते वक्त मुख उत्तर या दक्षिण दिशा की ओर रहे और दरवाजा सदैव बंद रखना चाहिए।
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