दुनिया भर में कई धर्म हैं, और हर धर्म की अपनी परंपराएं और तरीके हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण पहलू है मृत्यु के बाद के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया। विभिन्न धर्मों में मृत्यु के बाद शव के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाता है। आइए, जानते हैं कुछ प्रमुख धर्मों की अंतिम संस्कार की परंपराओं के बारे में।
हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार
हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो आमतौर पर शव को जलाया जाता है। यह प्रक्रिया अग्नि को शुद्ध करने और आत्मा के शांति के लिए की जाती है। लेकिन जब छोटे बच्चों की बात आती है, तो उन्हें जलाने की बजाय नदियों में प्रवाहित किया जाता है। इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है।
इस्लाम और ईसाई धर्म में दफनाने की परंपरा
इस्लाम धर्म में, मृतकों को दफनाया जाता है। यह प्रक्रिया मृतक के शरीर के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए की जाती है। ईसाई धर्म में भी यही परंपरा है, जहां मृतकों को दफनाने का नियम है। दोनों धर्मों में दफनाने के समय कुछ विशेष प्रार्थनाएं भी की जाती हैं।
पारसी समुदाय की अनोखी परंपरा
पारसी समुदाय में, मृतकों को दफनाने या जलाने की बजाय टॉवर ऑफ साइलेंस में रखा जाता है। यह एक खास जगह है जहां शव को खुले में रखा जाता है ताकि प्राकृतिक तरीके से उसका नाश हो सके। यह परंपरा पारसी धर्म के अनुसार, मृतकों के प्रति सम्मान प्रकट करने का एक तरीका है।
तिब्बती बौद्धों की स्काई बरीअल परंपरा
तिब्बत में बौद्ध समुदाय एक अनोखी अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अपनाता है, जिसे स्काई बरीअल कहा जाता है। जब किसी बौद्ध की मृत्यु होती है, तो शव को सफेद कपड़े में लपेटकर 3 से 5 दिन तक घर में रखा जाता है। इस दौरान बौद्ध भिक्षु धार्मिक प्रार्थना करते हैं, जिससे आत्मा की शुद्धि होती है।
शव का अंतिम संस्कार करने के दिन, इसे एक पहाड़ी पर ले जाकर सपाट जगह पर रखा जाता है। वहां, एक विशेष धुआं किया जाता है, जिससे गिद्ध और चील-कौवे जैसे पक्षी आकर्षित होते हैं। इस प्रक्रिया में एक बरियल मास्टर होता है, जो शव को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है। यह प्रकिया तिब्बती बौद्धों के लिए आत्मा की मुक्ति का एक तरीका है।
स्काई बरीअल पर प्रतिबंध
हालांकि, स्काई बरीअल की परंपरा तिब्बती बौद्धों में प्रचलित है, लेकिन इसे कई देशों में मान्यता नहीं दी गई है। अमेरिका समेत कई देशों में इस पर बैन लगा हुआ है। यदि अमेरिका में किसी तिब्बती बौद्ध की मृत्यु होती है, तो उसे स्काई बरीअल के लिए परमिट लेकर तिब्बत लाया जाता है। इस प्रकार, विभिन्न धर्मों की अंतिम संस्कार की परंपराएं न केवल उनके विश्वासों को दर्शाती हैं, बल्कि मृतकों के प्रति सम्मान भी प्रकट करती हैं। चाहे वह हिंदू धर्म का अग्नि संस्कार हो, इस्लाम और ईसाई धर्म का दफनाना, पारसी समुदाय का टॉवर ऑफ साइलेंस, या तिब्बती बौद्धों का स्काई बरीअल—इन सभी में जीवन और मृत्यु के प्रति गहरी समझ और श्रद्धा है।
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