इन दिनों तो सभी तरफ देश का 72 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारियां ही जोरों-शोरों से चल रही हैं. स्वतंत्रता दिवस के बारे में तो आज तक आप सभी ने कई कहानियां सुनी होगी लेकिन आपके मन में भी कभी तो ये सवाल आया ही होगा कि जब देश के तमाम सैनानी देश को अंग्रेजो से आजाद करवाने की लड़ाई में जुटे थे तब राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी कहां थे? जब भी स्वतंत्रता दिवस का जिक्र किया जाता है या आजादी के बाद के जश्न की बात होती है तो कभी भी इसमें महात्मा गाँधी का नाम नहीं आता है. हर कोई ये ही सोचता हैं कि अंग्रेजो से 200 साल के बाद जब देश आजाद हुआ था उस समय हर कही जश्न का माहौल बना हुआ था लेकिन महात्मा गाँधी इस जश्न में शामिल क्यों नहीं थे?
गाँधी जी ने देश को स्वतंत्र करवाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. महात्मा गाँधी ने देश को आजादी दिनाने के लिए और अंग्रेजों से मुक्त करवाने के लिए कई तरह के आंदोलन करवाए थे और देश को अहिंसा की राह पर चलना भी सिखाया था. इतनी मशक्क्त के बाद जब अंग्रेजों ने ये ऐलान कर दिया था कि वो देश को 15 अगस्त को आजाद कर देंगे इसके बाद जोरों-शोरों से जश्न की तैयारियां चल रही थी. इस दौरान ही जवाहर लाल नेहरु और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने गाँधी जी एक पत्र लिखा था.
पत्र में उन्होंने लिखा था कि 'बापू 15 अगस्त 1947 को हम अपना पहला स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे है. आप भी इसमें शामिल होए और अपना आशीर्वाद दें.' लेकिन महात्मा गाँधी फिर भी इस जश्न में शामिल नहीं हो पाए थे क्योकि जिस समय देशभर में आजादी की खुशियां मनाई जा रही थी उस समय बापू बंगाल के नोआखली गांव में हो रहे हिन्दू और मुस्लिम के बीच हिंसा को रोकने के लिए अनशन पर बैठे थे. गाँधी जी ने कई लोगों को ये कहा था कि वो स्वतंत्रता दिवस का जश्न चरखा चलाकर मनाएंगे.
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