नई दिल्ली : देश की अर्थयवस्था को लेकर किए जा रहे अलग -अलग दावों के बीच आखिर सरकार ने यह मान ही लिया कि वित्त वर्ष 2016-17 में देश की विकास दर धीमी पड़ी है. भारत की जीडीपी 2015-16 में 8 प्रतिशत की विकास दरकी तुलना में 2016-17 में गिरकर 7.1 प्रतिशत पर पहुंच गई. शुक्रवार को वित्त अरुण जेटली ने लोकसभा में यह बात कही.
बता दें कि वित्त मंत्री के अनुसार 2016 में वैश्विक आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी रहने के अलावा जीडीपी के मुकाबले तय निवेश में कमी, कॉर्पोरेट सेक्टर पर दबाव वाली बैलेंस शीट, इंडस्ट्री सेक्टर के क्रेडिट ग्रोथ में गिरावट और कई वित्तीय कारणों से 2016-17 की आर्थिक विकास दर में कमी आई. विकास दर धीमी पड़ने का मतलब है कि उद्योग और सेवा क्षेत्र में कम वृद्धि हुई .
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के ताजे आंकड़ों के अनुसार जीडीपी की वृद्धि दर 2014-15, 2015-16 तथा 2016-17 में क्रमश: 7.5 प्रतिशत, 8 प्रतिशत और 7.1 प्रतिशत रही थी . वित्त वर्ष 2017-18 की पहली और दूसरी तिमाही में जीडीपी क्रमश: 5.7 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत की दर से बढ़ी. स्मरण रहे कि किसी देश की आर्थिक प्रगति कई कारणों पर निर्भर करती है। इनमें संरचनात्मक, बाहरी, राजकोषीय और मौद्रिक कारक भी असर डालते हैं. इतना होने के बाद भी वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की अनुमानित मंदी के बावजूद, भारत 2016 में सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था रही.
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