नई दिल्ली: आज सोमवार (1 जुलाई) को नए आपराधिक कानून लागू होने के बाद विपक्ष ने सरकार पर तीखा हमला किया और उस पर सांसदों को निलंबित करके जबरन कानून पारित करने का आरोप लगाया। विपक्ष ने दावा करते हुए कहा कि कानून के अधिकांश भाग "कट, कॉपी और पेस्ट का काम" हैं।
उल्लेखनीय है कि, पिछले दिसंबर में संसद में पारित भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की विपक्षी नेताओं द्वारा आलोचना की गई है, जिनका दावा है कि इन्हें पर्याप्त चर्चा और बहस के बिना संसद में पारित कर दिया गया। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, चुनाव में लगे राजनीतिक और नैतिक झटके के बाद मोदी जी और भाजपा संविधान का सम्मान करने का दिखावा कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि आपराधिक न्याय प्रणाली के जो तीन कानून आज से लागू हो रहे हैं, उन्हें 146 सांसदों को निलंबित करके जबरन पारित किया गया था। दरअसल, जब इन कानूनों पर चर्चा चल रही थी, तब सदन में हंगामा करने के कारण 146 सांसद निलंबन की कार्रवाई का सामना कर रहे थे, इन्हे एक साथ नहीं बल्कि टुकड़ों में निलंबित किया गया था, पहले दिन कुछ को, फिर दूसरे दिन, लेकिन सदन में हंगामा नहीं थमा था, इस तरह 146 सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई हुई थी, वहीं, बाकी विपक्षी सांसद इसके विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे थे, ऐसी बीच संसद में तीनों कानूनों को पारित करने पर काम चल रहा था।
खड़गे ने आरोप लगया कि, भारत अब संसदीय प्रणाली पर इस 'बुलडोजर न्याय' को चलने नहीं देगा। खड़गे संसद के शीतकालीन सत्र का जिक्र कर रहे थे, जिसमें दोनों सदनों में विपक्ष के करीब दो तिहाई सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। संसद की सुरक्षा में सेंध के खिलाफ विपक्ष के विरोध के बीच सामूहिक निलंबन की यह घटना हुई। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने आरोप लगाया कि 90-99 प्रतिशत नये कानून "कट, कॉपी और पेस्ट" वाले हैं और सरकार मौजूदा कानूनों में कुछ संशोधन करके भी यही परिणाम हासिल कर सकती थी।
चिदंबरम ने अपने ट्वीट में कहा कि, हां, नए कानूनों में कुछ सुधार हैं और हमने उनका स्वागत किया है। उन्हें संशोधन के रूप में पेश किया जा सकता था। दूसरी ओर, कई प्रतिगामी प्रावधान हैं। उन्होंने आगे कहा कि, यह तीन मौजूदा कानूनों को खत्म करने और उन्हें बिना पर्याप्त चर्चा और बहस के तीन नए विधेयकों से बदलने का एक और मामला है। इसका प्रारंभिक प्रभाव आपराधिक न्याय प्रशासन में अव्यवस्था पैदा करना होगा।
वहीं, बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद सागरिका घोष ने भी नये कानूनों का विरोध किया है। घोष ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, देशद्रोह का अपराध पिछले दरवाजे से प्रवेश कर गया है - खतरनाक। आतंकवाद को पहली बार परिभाषित किया गया है और इसे दिन-प्रतिदिन के आपराधिक अपराधों का हिस्सा बनाया गया है - बहुत खतरनाक।
तीन नए आपराधिक कानून औपनिवेशिक युग की भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का स्थान लेंगे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जिन्होंने इन कानूनों का संचालन किया था, ने कहा था कि नए कानून न्याय प्रदान करने को प्राथमिकता देंगे, जबकि औपनिवेशिक काल के कानूनों में दंडात्मक कार्रवाई को प्राथमिकता दी जाती थी। नए कानून में एक “आधुनिक न्याय प्रणाली” लाई गई है, जिसमें जीरो FIR, पुलिस शिकायतों का ऑनलाइन पंजीकरण, SMS जैसे इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से समन और सभी जघन्य अपराधों के लिए अपराध स्थलों की अनिवार्य वीडियोग्राफी जैसे प्रावधान शामिल हैं।
3 नए आपराधिक कानूनों पर क्या बोले थे CJI चंद्रचूड़ :-
बता दें कि, भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने तीन नए आपराधिक कानूनों की तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि ये नए कानून बदलते भारत का "स्पष्ट संकेत" हैं। 'आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासन में भारत का प्रगतिशील मार्ग' विषय पर आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा था कि, मुझे लगता है कि संसद द्वारा तीन नए आपराधिक कानूनों का पारित होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत बदल रहा है। भारत आगे बढ़ रहा है, और हमें अपने समाज के भविष्य के लिए मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए नए कानूनी साधनों की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा था कि, ये कानून हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि कोई भी कानून हमारे समाज के दैनिक आचरण को आपराधिक कानून की तरह प्रभावित नहीं करता है। भारत तीन नए आपराधिक कानूनों के आगामी कार्यान्वयन के साथ अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए तैयार है। नए आपराधिक कानूनों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि पीड़ितों के हितों की रक्षा करने और अपराधों की कुशलतापूर्वक जांच और अभियोजन चलाने के लिए ये बदलाव बहुत जरूरी थे।
CJI ने कहा था कि, इसका स्वाभाविक अर्थ यह है कि हमें अपने फोरेंसिक विशेषज्ञों की क्षमता निर्माण में भारी निवेश करना चाहिए, जांच अधिकारियों को प्रशिक्षण देना चाहिए और अपनी न्यायिक प्रणाली में निवेश करना चाहिए। नए आपराधिक कानून के प्रमुख प्रावधान तभी सकारात्मक प्रभाव डालेंगे जब ये निवेश जल्द से जल्द किए जाएं।