चंडीगढ़: सीएम भगवंत मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार ने INDIA गठबंधन के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए फैसला किया है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान 27 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होने वाली नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं होंगे। यह फैसला बुधवार को विपक्षी दलों द्वारा यह दावा किए जाने के बाद आया कि 23 जुलाई को पेश किया गया केंद्रीय बजट "भेदभावपूर्ण" था, क्योंकि इसमें गैर-एनडीए दलों द्वारा शासित राज्य के लिए पर्याप्त धन आवंटित नहीं किया गया था।
हालाँकि, ये महज आरोप है, क्योंकि बजट दस्तावेज के मुताबिक, केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को 42,277.77 करोड़ रुपये का बजट दिया है, जो पिछली बार से 1.2 फीसद अधिक है। साथ ही जम्मू कश्मीर पुलिस के लिए भी 9,789.42 करोड़ रुपये अलग रखे हैं। वहीं, पूर्वोदय राज्यों, यानी झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश को शामिल करके एक योजना चलाने का लक्ष्य है। इसके अलावा बजट में सरकार ने घोषणा की है कि, वो असम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम को बाढ़ से हुए नुकसान की भरपाई भी करेगी। हर एक राज्य का अलग से विवरण तो बजट सम्बोधन में नहीं है, लेकिन बजट दस्तावेज़ के अनुसार, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को कुल 23,48,980 करोड़ रुपये दिए जाएंगे, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 12 फीसदी अधिक है। ऐसे में ये आरोप तथ्यहीन और राजनीति प्रेरित ही लगता है कि, आंध्र-बिहार को छोड़कर किसी अन्य राज्य को कुछ नहीं दिया गया, या गैर NDA राज्यों की अनदेखी की गई। हालाँकि, विपक्ष इन आरोपों को हवा देने में लगा है, क्योंकि इससे उसे सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में मदद मिलेगी। इसी कारण पूरे INDIA गठबंधन ने नीति आयोग की बैठक का भी बहिष्कार किया है। हालाँकि, यदि अन्याय हुआ है, तो राज्यों के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है। जब दिल्ली की AAP सरकार ये शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट जा सकती है कि हरियाणा हमारे हिस्से का पानी नहीं दे रहा, तो INDIA गठबंधन भी जा सकता है कि केंद्र हमारे हिस्से के पैसे नहीं दे रहा। लेकिन आरोप को सुप्रीम कोर्ट में साबित करना पड़ेगा, जो कि AAP सरकार भी नहीं कर पाई थी।
बहरहाल, AAP सरकार ने कहा कि मुख्यमंत्री भगवंत मान नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करेंगे और 27 जुलाई को होने वाली बैठक में शामिल नहीं होंगे। बजट में INDIA ब्लॉक शासित राज्यों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार का आरोप लगाते हुए, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को छोड़कर, सभी INDIA ब्लॉक मुख्यमंत्रियों ने नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करने का फैसला किया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सबसे पहले चेन्नई में बहिष्कार की घोषणा की। इसके बाद, कांग्रेस ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के सुखविंदर सिंह सुखू, कर्नाटक के सिद्धारमैया और तेलंगाना के रेवंत रेड्डी सहित उसके मुख्यमंत्री बैठक में शामिल नहीं होंगे। पंजाब के सीएम भगवंत मान के साथ, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और केरल के सीएम पिनाराई विजयन के भी बैठक में शामिल नहीं होने की उम्मीद है।
हालांकि, रिपोर्टों के अनुसार, ममता बनर्जी और टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन बैठक में जाएंगे और बंगाल के वैध बकाए के लिए "केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराने के लिए मंच का जोरदार इस्तेमाल करेंगे"। बुधवार को तेलंगाना विधानसभा को संबोधित करते हुए, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा कि उनकी सरकार केंद्रीय बजट में राज्य के साथ कथित अन्याय के विरोध में 27 जुलाई को होने वाली नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करेगी। हालाँकि, ये भी गौर करने वाली बात है कि, नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करने वाला विपक्ष, नीतियां बनने के बाद क्या कहेगा ? सरकार ने हमसे चर्चा किए बिना नीतियां बना ली ? जैसा वो अक्सर कहता रहता है। तीन नए आपराधिक कानूनों के समय भी अधिकतर विपक्षी सांसदों ने सदन से वॉकआउट कर दिया था, फिर कहा कि नए कानूनों पर रोक लगाई जाए, क्योंकि ये बिना चर्चा के पारित हुए हैं।
क्या है नीति आयोग का काम ?
नीति आयोग अब सरकार के विभिन्न क्रार्यक्रमों और नीतियों के बारे में इनपुट्स मुहैया करवाता है। इसका बजट निर्माण या सरकार के वित्तीय कामकाज में कोई दखल नहीं होता। नीति आयोग का उद्देश्य भारत सरकार और राज्यों को एक मंच प्रदान करना है, जहाँ पर सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश एक साथ बैठकर राष्ट्रीय हित में नीतियों के निर्माण को लेकर अपनी राय रखते हैं। लेकिन अब विपक्ष इसमें से बाहर है, तो जाहिर है उसकी राय भी नहीं होगी, और नीतियां बनेंगी।
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