गुलामी की जंजीरो में जकड़े हम आज़ाद लोग

गुलामी की जंजीरो में जकड़े हम आज़ाद लोग
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आज हम हमारे भारत देश की आज़ादी का जश्न मनाने को आतुर है, आज हम लाखो वीरों के उन बलिदानों को याद कर रहे है जिनके कारण हमें आज इस आज़ादी में साँस लेने का अवसर प्राप्त हो पाया है लेकिन आज भी यदि सोचा जाये तो हम गुलामी की जंजीरों में बंधे हुए है. आज भी कहीं न कहीं गुलामी की बातें सामने आ ही जाती है. हमें आज़ादी मिले 70 वर्ष हो रहे है और हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हमारे देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर चढ़कर राष्ट्रध्वज फहरा रहे है और इसके साथ ही आज़ादी की यादों को फिर ताजा किया जा रहा है. इस बीच फिर लाखों लोगो के मन में एक दिन के लिए ही सही लेकिन फिर से वह जज़्बा देखने को मिलता है जो हर भारतीय की पहचान बन जाता है.

लेकिन इसके बाद फिर से जेहन में वह सवाल उठ ही जाता है कि कि जब देश गुलाम था तो गोरे हम पर हुकूमत करते थे और आज जब देश आज़ाद और हम गुलाम है तो काले हम पर हुकूमत कर रहे है. आज हम वही करते है जो हायर अथॉरिटी हमसे करवाती है, अगर यह देखा जाये तो हम आज भी गुलाम है. कहीं नेताओं के कारण हम आज़ाद नहीं है तो कहीं कोई पैसे वाला व्यक्ति गरीब को अपना गुलाम बनाकर बैठा हुआ है.

कहीं बच्चे गुलाम है तो कहीं बड़े, कहीं महिलाओं को बाहर निकलने की आज़ादी नहीं है तो कहीं उन्हें हर ओर से जुर्म की ओर धकेला जाता है. आज दुनिया में हर कहीं महिलाएं पुरुष के कंधे से कन्धा मिलकर चल रही है लेकिन क्या भारत में आज हम महिलाओं को वो जगह दे पाये है. ये कुछ ऐसे सवाल है जिनके बारे में सोचना तो बहुत ही आसान है लेकिन कदम उठाने के लिए कोई भी तैयार नहीं हो पाता है.

हम कहीं न कहीं आज़ादी को लेकर बात करते है लेकिन हम उन बच्चों के बारे में शायद सोचना शायद भूल जाते है जो उसी वक़्त शायद कहीं न कहीं बाल मजदूरी का शिकार हो रहे होंगे. उन लड़कियों के बारे में शायद नहीं सोच पाते है जो कहीं किसी की हवस का शिकार बन रही है. कहा जाता है कि वे सब इन कामों को करने के लिए मजबूर है लेकिन क्या इस इतने बड़े भारत में या यह कहूँ कि ऐसे भारत में जहाँ हर किसी का दिल बहुत बड़ा बताया जाता है में इतना भी विश्वास नहीं है कि यह सब बंद किया जा सके.

हितेश सोनगरा

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